विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दषष्ठम अध्याययतो यतो निश्चरति मनश्चन्चलमस्थिरम्। यह स्थिर न रहने वाला चंचल मन, जिस-जिस कारण से सांसारिक पदार्थों में विचरता है, उस-उस से रोककर बारम्बार अन्तरात्मा में ही निरुद्ध करे। प्रायः लोग कहते हैं कि मन जहाँ भी जाता है जाने दो, प्रकृति में ही तो जायेगा और प्रकृति भी उस ब्रह्म के ही अन्तर्गत है, प्रकृति में विचरण करना ब्रह्म के बाहर नहीं है; किन्तु श्रीकृष्ण के अनुसार यह गलत है। गीता में इन मान्यताओं का किंचित् भी स्थान नहीं है। श्रीकृष्ण का कथन है कि मन जहाँ-जहाँ जाय, जिन माध्यमों से जाय, उन्हीं माध्यमों से रोककर परमात्मा में ही लगावें। मन का निरोध सम्भव है। इस निरोध का परिणाम क्या होगा?- |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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