यथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दपंचम अध्याय
योऽन्तःसुखोऽन्तरारामस्तथान्तज्र्योतिरेव यः। जो अन्तरात्मा में ही सुखवाला, ‘अन्तरारामः’-अन्तरात्मा में ही आरामवाला तथा जो अन्तरात्मा में ही प्रकाशवाला (साक्षात्कारवाला) है, वही योगी ‘ब्रह्मभूतः’-ब्रह्म के साथ एक होकर ‘ब्रह्मनिर्वाणम्’-वाणी से परे ब्रह्म, शाश्वत ब्रह्म को प्राप्त होता है। अर्थात् पहले विकारों (काम-क्रोध) का अन्त, फिर दर्शन, फिर प्रवेश। आगे देखें-
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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