विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दचतुर्थ अध्याय
योगेश्वर ने स्पष्ट किया कि वह ज्ञान तू स्वयं आचरण करके पायेगा, दूसरे के आचरण से तुझे नहीं मिलेगा। वह भी योग सिद्धि के काल में प्राप्त होगा, प्रारम्भ में नहीं। वह ज्ञान (साक्षात्कार) हृदय-देश में होगा, बाहर नहीं। श्रद्धालु, तत्पर, संयतेन्द्रिय एवं संशयरहित पुरुष ही उसे प्राप्त करता है। अतः हृदय में स्थित अपने संशय को वैराग्य की तलवार से काट। यह हृदय-देश की लड़ाई है। बाह्य युद्ध से गीतोक्त युद्ध का कोई प्रयोजन नहीं है।
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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