|
यथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्द
चतुर्थ अध्याय
एवं ज्ञात्वा कृतं कर्म पूर्वैरपि मुमुक्षुभिः।
कुरु कर्मैव तस्मात्वं पूर्वैः पूर्वतरं कृतम्।।15।।
अर्जुन! पहले होनेवाले मोक्ष की इच्छावाले पुरुषों द्वारा भी यही जानकर कर्म कया गया। क्या जानकर? यही कि जब कर्मों का परिणाम परमात्मा भिन्न न रह जाय, कर्मों के परिणाम परमात्मा की स्पृहा न रह जाने पर उस पुरुष को कर्म नहीं बाँधते। श्रीकृष्ण इसी स्थितिवाले हैं इसलिये वे कर्म में लिपायमान नहीं होते और उसी स्तर से हम जान लेंगे तो हमें भी कर्म नहीं बाँधेगा। जैसे श्रीकृष्ण, ठीक उसी स्तर से जो भी जान लेगा, वैसा ही वह पुरुष भी कर्मबन्धन से मुक्त हो जायेगा। अब श्रीकृष्ण ‘भगवान्’, ‘महात्मा’, ‘अव्यक्त’ ‘योगेश्वर’ या ‘महायोगेश्वर’ जो भी रहे हों, वह स्वरूप सबके लिये है। यही समझकर पहले के मुमुक्षु पुरुषों ने, मोक्ष की इच्छावाले पुरुषों ने कर्म पर कदम रखा। इसलिये अर्जुन! तू भी पूर्वजों द्वारा सदा से किये हुए इसी कर्म को कर। यही कल्याण का एकमात्र मार्ग है।
|
|