विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दतृतीय अध्याय
सर्वव्यापी परमात्मा यज्ञ में सर्वदा प्रतिष्ठित है। इस साधन-चक्र के अनुसार जो नहीं बरतता, वह पापायु पुरुष इन्द्रियों का सुख चाहनेवाला है, व्यर्थ ही जीता है। अर्थात् यज्ञ ऐसी विधि-विशेष है, जिसमें इन्द्रियों का आराम नहीं है अपितु अक्षय सुख है। इनिद्रयों के संयम के साथ इसमें लगने का विधान है। इन्द्रियों का आराम चाहनेवाले पापायु हैं। अभी तक श्रीकृष्ण ने नहीं बताया है कि यज्ञ है क्या? परन्तु क्या यज्ञ करते ही रहेंगे या इसका कभी अन्त भी होगा? इस पर योगेश्वर कहते हैं- |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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