भीष्म पितामह -अखण्डानन्द सरस्वती पृ. 2

श्री भीष्म पितामह -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती

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वंश परिचय और जन्म

विधाता का ऐसा ही विधान था, भगवान् की यही लीला थी। महात्मा महाभिषक की आँख नीची नहीं हुईं, वे बिना झिझक और हिचकिचाहट के गंगाजी की ओर देखते रहे। भगवान जानें उनके मन में क्या बात थी; परंतु ऊपर से तो ब्रह्मलोक के नियम का उल्लघंन हुआ ही था। इसलिये ब्रह्मा ने भरी सभा में महाभिषक से कहा कि 'भाई ! तुमने यहाँ के नियम का उल्लंघन किया है, इसलिये अब कुछ दिनों के लिए तुम मृर्त्यलोक में जाओ। वहाँ का काम तो सभांलना ही है, इस मर्यादा के उल्लंघन का दण्ड भी तुम्हें मिल जायेगा। एक बात और है- श्रीगंगाजी तुम्हें सुन्दर मालूम हुईं हैं, मधुर मालूम हुईं हैं और आकर्षक मालूम हुईं हैं। उनकी ओर खिंच जाने के कारण ही तुम्हारी आँखे उनकी ओर देखती रही हैं, इसलिये मृत्युलोक में जाकर तुम अनुभव करोगे कि जिस गंगा की ओर मैं खिंच गया था, उनका हृदय कितना निष्ठुर है, तुम देखोगे कि वे तुम्हारा कितना अप्रिय करती हैं।' महाभिषक ने ब्रह्मा की आज्ञा शिरोधार्य की।

उन दिनों पृथ्वी पर महाप्रतापी महाराजा प्रतीप का साम्राज्य था। उन्होंने बहुत बड़ी तपस्या करके प्रजा पालन की क्षमता प्राप्त कर ली थी और उनसे पवित्र, प्रतिष्ठित एवं वांछनीय और कोई वंश नहीं था। श्री महाभिषक ने उन्हीं का पुत्र होना अच्छा समझा और वे ब्रह्मा की अनुमति से उन्हीं के यहाँ आकर पुत्ररुप से अवतीर्ण हुए। धीरे-धीरे शुक्ल पक्ष के चन्द्रमा की भांति वे बढ़ने लगे और उनकी तीक्ष्ण बुद्धि, लोकोपकारप्रियता, अपने कर्तव्य में तत्परता आदि देखकर महाराजा प्रतीप ने उनकी शिक्षा-दीक्षा का सुन्दर प्रबन्ध कर दिया। थोड़े ही दिनों में वे सारी विद्याओं एवं विशेष करके धर्नुविद्या में निपुण हो गये। उनकी सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि वे जिस वृद्ध या रोगी पुरुष के सिर पर हाथ रख देते: वह भला-चंगा, हुष्ट-पुष्ट हो जाता था। इसी से संसार में वे शान्तनु नाम से प्रसिद्ध हुए। प्रतीप के बुढ़ापे में शान्तनु का जन्म हुआ था, इसलिये वे इसकी प्रतीक्षा में थे कि कब मेरा पुत्र योग्य हो जाय और मैं उसके जिम्मे प्रजा पालन का कार्य देकर जंगल में चला जाऊँ।

एक दिन प्रतीप ने शान्तनु से कहा- 'बेटा ! अब तुम सब प्रकार से योग्य हो गये हो। मैं बुड्ढा हो गया हूँ। अब मैं वानप्रस्थ-आश्रम में रहकर तपस्या करूँगा तुम राज-काज देखो। एक बात तुम्हें मैं और बताता हुँ, एक स्वर्गीय सुन्दरी तुमसे विवाह करना चाहती है। वह कभी-न-कभी तुम्हें एकान्त में मिलेगी। तुम उससे विवाह कर लेना और उसकी इच्छा पूर्ण करना। बेटा ! तुम्हें मेरी यही अन्तिम आज्ञा है !' इतना कहकर प्रतीप ने अपनी सम्पूर्ण प्रजा को एकत्र किया और सबकी सम्मति लेकर शान्तनु का राज्याभिषेक कर दिया और वे स्वयं तपस्या करने के लिये जंगल में चले गये।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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भीष्म पितामह -अखण्डानन्द सरस्वती
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. वंश परिचय और जन्म 1
2. पिता के लिये महान् त्याग 6
3. चित्रांगद और विचित्रवीर्य का जन्म, राज्य भोग, मृत्यु और सत्यवती का शोक 13
4. कौरव-पाण्डवों का जन्म तथा विद्याध्यन 24
5. पाण्डवों के उत्कर्ष से दुर्योधन को जलन, पाण्डवों के साथ दुर्व्यवहार और भीष्म का उपदेश 30
6. युधिष्ठिर का राजसूय-यज्ञ, श्रीकृष्ण की अग्रपूजा, भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण के स्वरुप तथा महत्तव का वर्णन, शिशुपाल-वध 34
7. विराट नगर में कौरवों की हार, भीष्म का उपदेश, श्रीकृष्ण का दूत बनकर जाना, फिर भीष्म का उपदेश, युद्ध की तैयारी 42
8. महाभारत-युद्ध के नियम, भीष्म की प्रतिज्ञा रखने के लिये भगवान् ने अपनी प्रतिज्ञा तोड़ दी 51
9. भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण का माहात्म्य कथन, भीष्म की प्रतिज्ञा-रक्षा के लिये पुन: भगवान् का प्रतिज्ञा भंग, भीष्म का रण में पतन 63
10. श्रीकृष्ण के द्वारा भीष्म का ध्यान,भीष्म पितामह से उपदेश के लिये अनुरोध 81
11. पितामह का उपदेश 87
12. भीष्म के द्वारा भगवान् श्रीकृष्ण की अन्तिम स्तुति और देह-त्याग 100
13. महाभारत का दिव्य उपदेश 105
अंतिम पृष्ठ 108

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