भीमसेन का अश्वथामा को मारने के लिए प्रस्थान

महाभारत सौप्तिक पर्व में ऐषीक पर्व के अंतर्गत ग्यारहवें अध्याय में संजय ने द्रौपदी के आग्रह करने पर भीम का अश्वथामा को मारने के लिए प्रस्थान करने का वर्णन किया है, जो इस प्रकार है[1]-

भीम का अश्वथामा को मारने के लिए प्रस्थान

संजय कहते हैं- राजन! दुःख के कारण द्रौपदी का यह भाँति-भाँति का विलाप सुनकर महाबली कुन्तीकुमार भीमसेन इसे सहन न कर सके। वे द्रोणपुत्र के वध का निश्चय करके सुवर्णभूषित विचित्र अंगों वाले रथ पर आरूढ़ हुए। उन्‍होंने बाण और प्रत्यंचा सहित एक सुन्दर एवं विचित्र धनुष हाथ में लेकर नकुल को सारथि बनाया तथा बाणसहित धनुष को फैलाकर तुरंत ही घोड़ों को हंकवाया। पुरुषसिंह नरेश! नकुल के द्वारा हांके गये वे वायु के समान वेग वाले शीघ्रगामी घोडे़ बड़ी उतावली के साथ तीव्र गति से चल दिये। भरतनन्दन! छावनी से बाहर निकलकर अपनी टेक से न टलने वाले भीमसेन अश्वत्थामा के रथ का चिह्न देखते हुए उसी मार्ग से शीघ्रतापूर्वक आगे बढ़े, जिससे द्रोणपुत्र अश्वत्थामा गया था।


टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. महाभारत सौप्तिक पर्व अध्याय 11 श्लोक 20-31

सम्बंधित लेख

महाभारत सौप्तिक पर्व में उल्लेखित कथाएँ


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ऐषीक पर्व

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