युधिष्ठिर का मारे हुए पुत्रादि को देखकर भाई सहित शोकातुर होना

महाभारत सौप्तिक पर्व में ऐषीक पर्व के अंतर्गत दसवें अध्याय में संजय ने युधिष्ठिर का द्रौपदी को बुलाने के लिये नकुल को भेजने, सृहृदों के साथ शिबिर में जाने तथा मारे हुए पुत्रादि को देखकर भाई सहित शोकातुर होने का वर्णन किया है, जो इस प्रकार है[1]-

युधिष्ठिर का मारे हुए पुत्रादि को देखकर शोकातुर होना

इस प्रकार आर्तस्वर से विलाप करते हुए कुरुराज युधिष्ठिर ने नकुल से कहा- भाई! जाओ, मन्दभागिनी राजकुमारी द्रौपदी को उसके मातृपक्ष की स्त्रियों के साथ यहाँ लिया लाओ। माद्रीकुमार नकुल ने धर्माचरण के द्वारा साक्षात धर्मराज की समानता करने वाले राजा युधिष्ठिर आज्ञा शिरोधार्य करके रथ के द्वारा तुरंत ही महारानी द्रौपदी के उस भवन की ओर प्रस्थान किया, जहाँ पाञ्चालराज के घर की भी महिलाएं रहती थीं।

माद्रीकुमार को वहाँ भेजकर अजमीढ़ कुलनन्दन युधिष्ठिर शोकाकुल हो उन सभी सुहृदों के साथ बारंबार रोते हुए पुत्रों के उस युद्धस्थल में गये, जो भूतगणों से भरा हुआ था। उस भयंकर एवं अमंगलमय स्थान में प्रवेश करके उन्होंने अपने पुत्रों, सुहृदों और सखाओं को देखा, जो खून से लथपथ होकर पृथ्वी पर पड़े थे। उनके शरीर छिन्न भिन्न हो गये थे और मस्तक कट गये थे। उन्‍हें देखकर कुरुकुलशिरोमणि तथा धर्मात्‍माओं में श्रेष्ठ राजा युधिष्ठिर अत्यन्त दुखी हो गये और उच्चस्वर से फूट फूटकर रोने लगे। धीरे धीरे उनकी संज्ञा लुप्त हो गयी और वे अपने साथियों सहित पृथ्वी पर गिर पड़े।


टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. महाभारत सौप्तिक पर्व अध्याय 10 श्लोक 17-31

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महाभारत सौप्तिक पर्व में उल्लेखित कथाएँ


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ऐषीक पर्व

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