विषय सूची
श्रीगीतगोविन्दम् -श्रील जयदेव गोस्वामी
सप्तम: सर्ग:
नागर-नारायण:
त्रयोदश: सन्दर्भ
13. गीतम्
हरि-चरण-शरण-जयदेव-कवि-भारती। अनुवाद- कोमल वपु वाली मनोहर लावण्यवती कला-समलंकृत युवती जैसे सुन्दर गुणों वाले युवकों के मन में सदा विराजमान रहती है, वैसे ही श्रीकृष्ण के चरणों के शरणागत श्रीजयदेव कवि द्वारा विरचित यह सुललित गीति भक्तजनों के मन में सदा विराजमान हो। पद्यानुवाद बालबोधिनी- जयदेव कवि कहते हैं कि उनके रक्षक एकमातर् श्रीकृष्ण के चरण ही हैं। उनसे अलग उनका और कोई रक्षक नहीं है। जयदेव रचित कविता कोमल वर्णमयी और काव्य-सौष्ठव की कलाओं से समलंकृत है यह कविता भक्तों के हृदय में उसी प्रकार स्थान प्राप्त करे, जिस प्रकार कोमल वपुवाली तथा श्रृंगार आदि रसवर्द्धिनी छह कलाओं से विशिष्ट कोई सुन्दरी अपने नायक के हृदय में विराजती है। यथा लावण्य विभूषिता कोई नायिका अपने नायक के मनको अत्यधिक आनन्द प्रदान किया करती है, उसी प्रकार यह काव्य भक्तों के हृदय को भी आनन्दित करे यह कवि की कामना है।
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ अन्वय- कोमल-कलावती (कोमला माधुर्यगुणसम्पन्ना कलावती कवित्व-कला-शालिनी च) हरि-चरण-शरण-जयदेव-कवि-भारती (हरिचरण-मेव शरणम् आश्रयो यस्या: तथाभूता जयदेवकवे: भारती वाणी) [यूनां हृदये कोमलकलावती कोमला मृद्वंगी कलावती रति-कलानिपुणा युवतिरिव रसज्ञानां भक्तानां हृदि (हृदये) वसतु]॥8॥
संबंधित लेख
सर्ग | नाम | पृष्ठ संख्या |