गीत गोविन्द -जयदेव पृ. 2

श्रीगीतगोविन्दम्‌ -श्रील जयदेव गोस्वामी

श्रीश्रीगुरु-गौरांगौ जयत:

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प्रस्तावना

श्रीगौड़ीय वेदान्त समिति के प्रतिष्ठाता एवं आचार्य केशरी नित्यलीला प्रविष्ट ॐविष्णुपाद अष्टोत्तरशत श्रीश्रीमद्भर्क्तिप्रज्ञान केशव गोस्वामी महाराज की अहैतु की अनुकम्पा से उन्हीं की प्रीति के लिए कविकुलतिलक श्रीजयदेव गोस्वामी कृत श्रीगीतगोविन्द का यह अभिनव संस्करण प्रकाशित हो रहा है।

किसी भी ग्रन्थ को पढ़कर उसका शब्दार्थ ग्रहण करना एक बात है और गम्भीर भावार्थ को समझकर उससे भली-भाँति परिचित होना एक और बात है। शब्दार्थ समझना अधिकतर सहज होने पर भी गम्भीर भावार्थ समझना उतना सहज नहीं है। जो इस ग्रन्थ का अधिकारी नहीं है, उसके लिए तो भावार्थ ग्रहण करना नितान्त असम्भव है। इसीलिए सभी प्राचीन ग्रन्थों के प्रारम्भ में अधिकारी और अनधिकारी की बात बतलायी गयी है। किसी-किसी महानुभाव ग्रन्थ कारने अनधिकारियों को उन-उन ग्रन्थों को पाठ करने में, जिसके लिए वे अनधिकारी हैं, शपथ देकर उनको पढ़ने के लिए निषेध किया है। इसका उद्देश्य क्या है? उद्देश्य और कुछ नहीं, अनधिकारी उन ग्रन्थों को पाठकर सही अर्थ समझने के बदले दूसरा अर्थ समझ लेंगे और परिणाम स्वरूप हित के बदले अहित ही होगा। पूज्यपाद श्रीजयदेव गोस्वामी ने भी अपने ग्रन्थ के सर्वप्रथम मगंलाचरण में ही अधिकार की बात स्पष्ट कर दी है-

यदि हरिस्मरणे सरसं मन
यदि विलास-कलासु कुतूहलम्र।
मधुर-कोमल-कान्त पदावलीं
श्रृणु तदा जयदेव-सरस्वतीम्॥
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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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गीत गोविन्द -श्रील जयदेव गोस्वामी
सर्ग नाम पृष्ठ संख्या
प्रस्तावना 2
प्रथम सामोद-दामोदर: 19
द्वितीय अक्लेश केशव: 123
तृतीय मुग्ध मधुसूदन 155
चतुर्थ स्निग्ध-मधुसूदन 184
पंचम सकांक्ष-पुण्डरीकाक्ष: 214
षष्ठ धृष्ठ-वैकुण्ठ: 246
सप्तम नागर-नारायण: 261
अष्टम विलक्ष-लक्ष्मीपति: 324
नवम मुग्ध-मुकुन्द: 348
दशम मुग्ध-माधव: 364
एकादश स्वानन्द-गोविन्द: 397
द्वादश सुप्रीत-पीताम्बर: 461

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