गीता प्रबोधनी -स्वामी रामसुखदास
चौथा अध्याय
निराशीर्यतचित्तात्मा त्यक्तसर्वपरिग्रह: । व्याख्या- केवल शरीर-निर्वाह के लिये जो कर्म किये जायँ, उनसे यदि कोई पाप बन भी जाय तो वह लगता नहीं। परन्तु जो मनुष्य भोग और संग्रह के लिये कर्म करता है, वह पाप से बच नहीं सकता। यदृच्छालाभसन्तुष्टो द्वन्द्वातीतो विमत्सर: । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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