गीता प्रबोधनी -स्वामी रामसुखदास
दूसरा अध्याय
भोगैश्वर्यप्रसक्तानां तयापहृतचेतसाम् । व्याख्या- भोग और ऐश्वर्य (संग्रह) की आसक्ति कल्याण में मुख्य बाधक है। सांसारिक भोगों को भोगने तथा रुपयों आदि का संग्रह करने वाला मनुष्य अपने कल्याण का निश्चय भी नहीं कर सकता, फिर कल्याण करना तो दूर रहा! इसलिये भगवान निष्काम भाव (योग) का अन्वय-व्यतिरेक से वर्णन करते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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