गीता प्रबोधनी -रामसुखदास पृ. 42

गीता प्रबोधनी -स्वामी रामसुखदास

दूसरा अध्याय

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भोगैश्वर्यप्रसक्तानां तयापहृतचेतसाम् ।
व्यवसायात्मिका बुद्धि: समाधौ न विधीयते ॥44॥

उस पुष्पित वाणी से जिसका अन्तःकरण हर लिया गया है अर्थात भोगों की तरफ खिंच गया है, और जो भोग तथा ऐश्वर्य में अत्यन्त आसक्त हैं, उन मनुष्यों की परमात्मा में एक निश्चय वाली बुद्धि नहीं होती।

व्याख्या- भोग और ऐश्वर्य (संग्रह) की आसक्ति कल्याण में मुख्य बाधक है। सांसारिक भोगों को भोगने तथा रुपयों आदि का संग्रह करने वाला मनुष्य अपने कल्याण का निश्चय भी नहीं कर सकता, फिर कल्याण करना तो दूर रहा! इसलिये भगवान निष्काम भाव (योग) का अन्वय-व्यतिरेक से वर्णन करते हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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