गीता प्रबोधनी -स्वामी रामसुखदास
दूसरा अध्याय
अव्यक्तादीनि भूतानि व्यक्तमध्यानि भारत । व्याख्या-शरीरी स्वयं अविनाशी है, शरीर विनाशी है। स्थूलदृष्टि से केवल शरीरों को ही देखें तो वे जन्म से पहले भी हमारे साथ नहीं थे और मरने के बाद भी वे हमारे साथ नहीं रहेंगे। वर्तमान में वे हमारे साथ मिले हुए से दीखते हैं, पर वास्तव में हमारा उनसे प्रतिक्षण वियोग हो रहा है। इस तरह मिले हुए और बिछुड़नेवाले प्राणियों के लिये शोक करने से क्या लाभ? आश्चर्यवत्पश्यति कश्चिदेन माश्चर्यवद्वदति तथैव चान्य: । व्याख्या-यह शरीरी इतना विलक्षण है कि इसका अनुभव भी आश्चर्यजनक होता है, वर्णन भी आश्चर्यजनक होता है और इसका वर्णन सुनना भी आश्चर्यजनक होता है। परन्तु शरीरी का अनुभव सुनने मात्र से अर्थात् अभ्यास से नहीं होता, प्रत्युत स्वीकार करने से होता है। इसका उपाय है-चुप होना, शान्त होना, कुछ न करना। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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