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गीता प्रबोधनी -स्वामी रामसुखदास
सत्रहवाँ अध्याय
यजन्ते सात्त्विका देवान्यक्षरक्षांसि राजसा: । व्याख्या- भगवान ने अब तक उन मनुष्यों की बात बतायी, जो शास्त्रविधि को न जानने के कारण उसका ‘अज्ञतापूर्वक’ त्याग करते हैं; परन्तु अपने इष्ट तथा उसके पूजन में श्रद्धा रखते हैं। अब इन दो श्लोकों में भगवान उन श्रद्धाविहीन मनुष्यों का वर्णन करते हैं, जो शास्त्रविधि का ‘विरोधपूर्वक’ त्याग करते हैं। यहाँ श्रद्धा, शास्त्रविधि, प्राणिसमुदाय और भगवान -इन चारों के साथ विरोध है। ऐसा विरोध दूसरी जगह आये राजस-तामस वर्णन में नहीं है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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