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गीता प्रबोधनी -स्वामी रामसुखदास
पन्द्रहवाँ अध्याय
यदादित्यगतं तेजो जगद्भासयतेऽखिलम् । व्याख्या- प्रभाव और महत्त्व की तरफ आकर्षित होना जीव का स्वभाव है। प्राकृत पदार्थों के सम्बन्ध से जीव प्राकृत पदार्थों के प्रभाव और महत्त्व से प्रभावित हो जाता है। अतः जीवपर पड़े प्राकृत पदार्थों के प्रभाव और महत्त्व को हटाने के लिये भगवान का यह रहस्य प्रकट करते हैं कि उन पदार्थों में जो प्रभाव और महत्त्व देखने में आता है, वह वस्तुतः (मूल में) मेरा ही है, उनका नहीं। सर्वोपरि प्रभावशाली तथा महत्त्वशाली मैं ही हूँ। मेरे ही प्रकाश से सब प्रकाशित हो रहे हैं। गामाविश्य च भूतानि धारयाम्यहमोजसा । व्याख्या-पृथ्वी, चन्द्रमा आदि सब भगवान की अपरा प्रकृति है[1]। अतः इसके उत्पादक, धारक, पालक, संरक्षक, प्रकाशक आदि सब कुछ भगवान ही हैं। भगवान की शक्ति होने से अपरा प्रकृति भगवान से अभिन्न है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ (गीता 7।4)
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