विषय सूची 1 गीता प्रबोधनी -स्वामी रामसुखदास 1.1 तेरहवाँ अध्याय 2 टीका टिप्पणी और संदर्भ 3 संबंधित लेख गीता प्रबोधनी -स्वामी रामसुखदास तेरहवाँ अध्याय असक्तिरनभिष्वंग: पुत्रदारगृहादिषु । नित्यं च समचित्तत्त्वमिष्टानिष्टोपपत्तिषु ॥9॥ आसक्ति रहित होना, पुत्र, स्त्री, घर आदि में एकात्मता (घनिष्ठ सम्बन्ध) न होना और अनुकूलता-प्रतिकूलता की प्राप्ति में चित्त का नित्य सम रहना। मयि चानन्ययोगेन भक्तिरव्यभिचारिणी । विविक्तदेशसेवित्वमरतिर्जनसंसदि ॥10॥ मुझमें अनन्य योग के द्वारा अव्यभिचारिणी भक्ति का होना, एकान्त स्थान में रहने का स्वभाव होना और जन-समुदाय में प्रीति का न होना। टीका टिप्पणी और संदर्भ संबंधित लेख गीता प्रबोधनी -रामसुखदास अध्याय पृष्ठ संख्या अध्याय 1 1 अध्याय 2 18 अध्याय 3 58 अध्याय 4 82 अध्याय 5 104 अध्याय 6 118 अध्याय 7 141 अध्याय 8 158 अध्याय 9 173 अध्याय 10 191 अध्याय 11 213 अध्याय 12 242 अध्याय 13 255 अध्याय 14 280 अध्याय 15 297 अध्याय 16 315 अध्याय 17 330 अध्याय 18 345 वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ अं क ख ग घ ङ च छ ज झ ञ ट ठ ड ढ ण त थ द ध न प फ ब भ म य र ल व श ष स ह क्ष त्र ज्ञ ऋ ॠ ऑ श्र अः