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गीता प्रबोधनी -स्वामी रामसुखदास
ग्यारहवाँ अध्याय
श्रीभगवानुवाच- व्याख्या- निमित्तमात्रं बनने का तात्पर्य यह नहीं है कि नाममात्र के लिये कर्म करो, प्रत्युत इसका तात्पर्य है कि अपनी पूरी-की-पूरी शक्ति लगाओं, पर अपने को कारण मत मानो अर्थात अपने उद्योग में कमी भी मत रखो और अपने में अभिमान भी मत करो। भगवान ने अपनी ओर से हम पर कृपा करने में कोई कमी नहीं रखी है। हमें तो निमित्त मात्र बनना है। अर्जुन के सामने तो युद्ध था, इसलिये भगवान उनसे कहते हैं कि तुम निमित् तमात्र बनकर युद्ध करो, तुम्हारी विजय होगी। इसी तरह हमारे सामने संसार है, इसलिये हम भी निमित्त मात्र बनकर साधन करें तो संसार पर हमारी विजय हो जायगी। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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