गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण
ज्ञान-कर्म-संन्यास योग
उधर अयोध्या में राम-वियोग के कारण महाराज दशरथ ने शरीर त्याग दिया। भरत और शत्रुघ्न ननिहाल से अयोध्या आए और राम-लक्ष्मण-सीता के वन जाने का समाचार सुनकर दशरथ की अन्त्येष्ठि क्रिया कर राम को वापस अयोध्या में लाने के लिए वन को रवाना हो गए। राम के समझाने पर उनकी चरण-पादुका लेकर भरत अयोध्या में आए, राम के स्थान पर उनकी चरण-पादुका सिंहासन पर रक्खी और स्वयं नन्दीग्राम में पर्णकुटी बनाकर विरक्त भाव से रहने लगे। श्रीराम का पंचवटी में पक्षीराज जटायु से परिचय हुआ। लंकाधिपति रावण की भगिनी शूर्पणखा के नाक-कान काटकर लक्ष्मण ने उसको कुरूप बना दिया। शूर्पणखा अपनी दुर्गति बनाकर अपने भाई रावण के पास गई और सारा वृत्तान्त रावण को सुनाया। रावण ने बदला लेने के लिए खर, दूषण व त्रिशरा आदि राक्षसों को दण्डकारण्य में भेजा किन्तु श्रीराम ने खर, दूषण तथा त्रिशिरा तीनों राक्षसों को मार डाला। अकम्पन नामक राक्षस प्राण बचाकर भाग गया, उसने रावण से खर, दूषण, त्रिशरा के मारे जाने का सम्वाद रावण को सुनाया। यह समाचार सुनकर रावण ने सीता-हरण निश्चय किया और “मारीच” नाम के राक्षस के पास जाकर छल से सीता-हरण करने की योजना बनाई। मारीच स्वर्ण-मृग बना, राम ने उसका पीछा किया और पीछे से रावण ने सीता-हरण कर लिया। सीता को रावण ने लंका की अशोक वाटिका में बन्दी बनाकर रक्खा। जब रावण सीता को विमान में लंका की ओर ले जा रहा था तो मार्ग में पक्षीराज जटायु ने रावण को रोका और उससे युद्ध किया किन्तु रावण जटायु को आहत कर बच निकला। सीता की खोज करते समय इस जटायु द्वारा ही राम को यह पता चला था कि सीता को रावण हरकर लंका ले गया है। राम ने मार्ग में कबन्ध राक्षस को मारा और शबरी के झूठे बेर खाए। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
अध्याय | अध्याय का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज