विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दचतुर्थ अध्याय
श्रीभगवानुवाच अर्जुन! मैंने इस अविनाशी योग को कल्प के आदि में विवस्वान् (सूर्य) के प्रति कहा, विवस्वान् ने मनु से और मनु ने इक्ष्वाकु से कहा। किसने कहा? मैंने। श्रीकृष्ण कौन थे? एक योगी। तत्त्वस्थित महापुरुष ही इस अविनाशी योग को कल्प के आरम्भ में अर्थात् भजन के आरम्भ में विवस्वान् अर्थात् जो विवश हैं, ऐसे प्राणियों से कहता है। सुरा में संचार कर देता है। यहाँ सूर्य एक प्रतीक है; क्योंकि सुरा में ही वह परम प्रकाशस्वरूप है और वहीं उसके पाने का विधान है। वास्तविक प्रकाशदाता (सूर्य) वहीं है। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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