विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दतृतीय अध्याय
ऐसी स्थितिवाले महापुरुष प्रजा के मूल उद्गम परमात्मा में प्रविष्ठ और स्थित रहते हैं। ऐसे महापुरुषों की बुद्धि मात्र यंत्र है। वे ही प्रजापति कहलाते हैं। वे प्रकृति के द्वन्द्व का विश्लेषण कर ‘आराधना-क्रिया’ की रचना करते हैं। यज्ञ के अनुरूप संस्कारों का देना ही प्रजा की रचना है। इससे पूर्व समाज अचेत एवं अव्यवस्थित रहता है। सृष्टि अनादि है। संस्कार पहले से ही हैं; किन्तु अस्त-व्यस्त एवं विकृत हैं। यज्ञ के अनुरूप उन्हें ढालना ही रचना या सजाना है। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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