विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दतृतीय अध्यायसहयज्ञाः प्रजाः सृष्ट्वा पुरोवाच प्रजापतिः। प्रजापति ब्रह्मा ने कल्प के आदि में यज्ञसहित प्रजा को रचकर कहा कि इय यज्ञ द्वारा वृद्धि को प्राप्त होओ। यह यज्ञ तुमलोगों की ‘इष्टकामधुक्’- जिसमें अनिष्ट न हो, विनाशरहित इष्ट-सम्बन्धी कामना की पूर्ति करेगा। यज्ञसहित प्रजा को किसने रचा? प्रजापति ब्रह्मा ने। ब्रह्मा कौन? क्या चार मुख और आठ आँखों वाला देवता, जैसा कि प्रचलित है? नहीं, श्रीकृष्ण के अनुसार देवता नाम की कोई अलग सत्ता है ही नहीं। फिर प्रजापति कौन है? वस्तुतः जिसने प्रजा के मूल उद्गम परमात्मा में प्रवेश पा लिया है, वह महापुरुष प्रजापति है। उसकी बुद्धि ही ब्रह्मा है- ‘अहंकार सिव बुद्धि अज, मन ससि चित्त महान।’[1] उस समय बुद्धि यन्त्रमात्र होती है। उस पुरुष की वाणी में परमात्मा ही बोलता है।
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ रामचरितमानस, 6/15 क
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