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श्री भीष्म पितामह -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती
महाभारत-युद्ध के नियम, भीष्म की प्रतिज्ञा रखने के लिये भगवान् ने अपनी प्रतिज्ञा तोड़ दीमैं बूढ़ा हूँ, मेरी आयु के अब थोड़े ही दिन बाकी हैं। मुझसे जो कुछ हो सकता है, वह कर रहा हूँ। तुम मेरा पराक्रम देखना चाहते हो, अच्छा देखो! मैं अकेला ही पाण्डवों को और पाण्डव के सब सैनिकों को रोकता हूँ।' भीष्म पितामह के मुँह से ये शब्द निकलते ही कौरवों की सेना में शंख बजने लगे। सब लोग अपने प्रतिपक्षियों पर आक्रमण करने के लिये दौड़ पड़े। पाण्डवों की सेना में भी अनेकों प्रकार के मारु बाजे बजने लगे। उस दिन का युद्ध अद्भुत युद्ध था। कुरुक्षेत्र की सारी भूमि में सिर-ही-सिर दीखते थे। कोई मारो-मारो, काटो-काटो कर रहा था तो किसी के पैर, किसी के हाथ कट गये थे, वह युद्धभूमि में पड़ा कराह रहा था। महावीर भीष्म बाणवर्षा द्वारा दसों दिशाओं को एकाकार करते हुए पाण्डव-पक्ष के वीरों के नाम ले-लेकर उन्हें मारने लगे। उस समय अकेले भीष्म फुर्ती के कारण सैकड़ों, हजारों रुप मं दीख रहे थे। उनके बाणों से चोट खाकर पाण्डवों की सेना अचेत-सी हो गयी और हाहाकार करने लगी। पाण्डवों के सैनिक भागने लगे। श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा-'देखो! अब बड़ा भयंकर समय सामने आ गया है, इस समय यदि तुम भीष्म पर प्रहार न करोगे तो तुम्हारा किया-कराया कुछ नहीं होगा। तुमने पहले प्रतिज्ञा की थी कि जो भी मुझसे युद्धभूमि में लड़ने आयेगा चाहे वह भीष्म, द्रोण अथवा कृप ही क्यों न हों मैं उनको और उनके अनुचरों को मारुंगा। अब समय आ गया है, अपनी प्रतिज्ञा पूरी करो।' अर्जुन ने कहा कि 'मेरा रथ उनके पास ले चलो।' भगवान् ने रथ बढ़ाया। अर्जुन का रथ भीष्म की ओर जाते देखकर सैनिकों की हिम्मत बढ़ी, वे भी लौटे, फिर घमासान युद्ध होने लगा। अर्जुन ने शीघ्रता से बाण चलाकर भीष्म पितामह के धनुष की कई डोरी काट डाली। भीष्म ने अर्जुन को शाबाशी दी और दृढ़तापूर्वक युद्ध करने के लिये कहा। भीष्म ने अपने तीक्ष्ण बाणों से श्रीकृष्ण और अर्जुन दोनों को ही व्यथित किया, उनके शरीर क्षत-विक्षत हो गये। भीष्म के बाणों से सारी सेना पीड़ित हो गयी और भागने लगी। श्रीकृष्ण सोचने लगे कि भीष्म पितामह तो अपना पूरा पराक्रम दिखा रहे हैं और अर्जुन उनके साथ कोमल युद्ध कर रहा है। अर्जुन के मन में उनके प्रति गुरुभाव है न। इसी से वह उनके प्रति कठोर बाणों का उपयोग नहीं करता। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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