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श्री भीष्म पितामह -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती
युधिष्ठिर का राजसूय-यज्ञ, श्रीकृष्ण की अग्रपूजा, भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण के स्वरुप तथा महत्तव का वर्णन, शिशुपाल-वध'शिशुपाल भीष्म के मुख से ऐसी मर्म की बात सुनकर आगबबूला हो गया। वह क्रोधान्ध होकर खुल्लमखुल्ला गाली देने लगा। अन्त में भीष्म ने कहा कि 'अब बात करने से कोई लाभ नहीं, जिसमें दम हो, हिम्मत हो वह युद्ध करने के लिये श्रीकृष्ण को बुलावे, अभी निपटारा हो जाये।' भीष्म की बात सुनकर शिशुपाल ने श्रीकृष्ण को ललकारकर कहा 'आओ, हम लोग दो-दो हाथ देख लें। आज पाण्डवों के साथ तुम्हें मारकर मैं अपनी चिरकालीन अभिलाषा पूर्ण करूँ।' वह नाना प्रकार के कटु वचन कहने लगा। शिशुपाल के कटु वचन समाप्त हो जाने के पश्चात् बड़ी गम्भीरता और धैर्य के साथ श्रीकृष्ण अत्यन्त कोमल स्वर से बोले-'नरपतियो! आप लोग शिशुपाल को जानते हैं, हमारे साथ इसका जैसा सम्बन्ध है, वह किसी से छिपा नहीं है। हमने अब तक इसकी कोई बुराई नहीं की है, फिर भी यह दुराचारी सर्वदा हमारे अनिष्ट में ही लगा रहता है। यह हमसे अकारण शत्रुता रखता है। जब हमारे प्राग्ज्योतिषपुर जाने का समाचार इसको मिला, तब इसने चुपके से जाकर द्वारका में आग लगा दी। राजा भोज रैवतक पहाड़ पर विहार कर रहे थे, तब इसने अकारण ही उनके अनुचरों को मारा। मेरे पिता के अश्वमेध-यज्ञ में इसने घोड़ा चुरा लिया। तपस्वी बभ्रु की स्त्री जब सौवीर देश को जा रही थी, तब इस नीच ने मार्ग में आक्रमण करके उसके साथ बलात्कार किया। करुषराज की पोशाक पहनकर इसने उनकी भावी पत्नी को धोखा देकर उड़ा लिया। अपनी बुआ की बात मान लेने के कारण ही मैंने इसके अपराधों को क्षमा किया और अब तक मारा नहीं। मैंने इसका आचरण आप लोगों के सामने स्पष्ट रुप से रख दिया है। मैं अब तक इसके सौ अपराध क्षमा कर चुका हूँ। अब यह नीच किसी प्रकार जीवित नहीं बच सकता। आज मेरा यह क्रोध किसी प्रकार व्यर्थ नहीं जा सकता।' भरी सभा में इस प्रकार भण्डाफोड़ होने पर भी शिशुपाल लज्जित नहीं हुआ। वह उल्टे हँसकर श्रीकृष्ण की ही मखौल उड़ाने लगा। श्रीकृष्ण ने सुदर्शन चक्र का स्मरण किया। सब लोगों के सामने ही वह श्रीकृष्ण के हाथ में आ गया। भगवान् ने ज्यों ही उसे आज्ञा की, त्यों ही वह चमकता हुआ चला और शिशुपाल के सिर को धड़ से अलग करके जमीन में गिरा दिया। राजाओं के देखते-देखते शिशुपाल के शरीर से बिजली के समान एक ज्योति निकली और वह श्रीकृष्ण के पैरों के पास चक्कर लगाकर उन्हीं में समा गयी। यह देखकर लोगों को बड़ा आश्चर्य हुआ। सब लोगों ने भीष्म की भूरि-भूरि प्रशंसा की। उनके ज्ञान-विज्ञान की चारों ओर प्रशंसा होने लगी। सब लोग यही कहते कि जगत् में इस समय भीष्म-जैसा तत्वज्ञ और कोई नहीं है। युधिष्ठिर का यज्ञ निर्विघ्न समाप्त हुआ। सब लोग अपने-अपने घर चले गये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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