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श्री भीष्म पितामह -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती
युधिष्ठिर का राजसूय-यज्ञ, श्रीकृष्ण की अग्रपूजा, भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण के स्वरुप तथा महत्तव का वर्णन, शिशुपाल-वध'आकाशवाणी से प्रभावित होकर माता ने स्नेहवश पुत्र को अपनी गोद में उठा लिया और मृत्यु की बात से घबराकर आकाशवाणी को लक्ष्य करके कहा-'जिसने मेरे पुत्र के बारे में ये वचन कहे हैं, उसको प्रणाम करके मैं इतना और जानना चाहती हूँ कि इसकी मृत्यु किसके हाथ से होगी।' आकाशवाणी ने उत्तर दिया कि 'जिसकी गोद में जाते ही इस बालक के दो हाथ और एक आँख गायब हो जायेगी, वही इसे मारेगा।' यह बात चारों ओर फैल गयी। अनेकों देश के राजा-रईस इस अदभुत बालक को देखने के लिये आने लगे। शिशुपाल के पिता सबका यथायोग्य सत्कार करते और बालक को गोद में दे देते। इस प्रकार हजारों व्यक्तियों की गोद में यह दिया गया, परंतु इसकी तीसरी आँख् और दो हाथ गायब नहीं हुए। 'एक दिन अपनी बुआ के इस लड़के का समाचार सुनकर श्रीकृष्ण भी आये। यथायोग्य सत्कार होने के पश्चात् उन्होंने भी शिशुपाल को गोद में लिया श्रीकृष्ण के शरीर से स्पर्श होते ही इसकी तीसरी आँख गायब हो गयी और दोनों हाथ टूटकर गिर पड़े। इस पर दु:खी होकर शिशुपाल की माता ने अपने भतीजे श्रीकृष्ण से कहा-'श्रीकृष्ण! भयभीतों को आश्रय देने वाले एकमात्र तुम्हीं हो,तुम्हीं अभय और शान्ति देते हो। मैं तुमसे एक वरदान माँगती हूँ, वह मुझे दो।' श्रीकृष्ण ने कहा-'देवी! डरो मत, मुझसे आपको कोई भय नहीं है। मैं आपको क्या वर दूँ! आप जो कहिये वही करुं, चाहे वह हो सकता हो या नहीं।' शिशुपाल की माता ने कहा-'श्रीकृष्ण! यह शिशुपाल यदि तुम्हारा कभी अपराध भी करे, तो क्षमा कर देना।' श्रीकृष्ण ने कहा-'यदि तुम्हारा पुत्र मारने योग्य सौ अपराध भी करेगा तो मैं क्षमा कर दूँगा, कुछ कहूँगा नहीं। तुम शोक न करो।' कथा समाप्त करते हुए भीष्म ने कहा-'भीमसेन! देखो: श्रीकृष्ण के इसी वरदान से मत्त होकर शिशुपाल बेधड़क युद्ध के लिये ललकार रहा है। सच्ची बात तो यह है कि इसका ललकारना भी श्रीकृष्ण की प्रेरणा से ही हो रहा है। शिशुपाल ने इस भरी सभा में जैसी बातें कहीं, वैसी बात कोई भी सभ्य पुरुष नहीं कह सकता। घबराने की कोई आवश्यकता नहीं। श्रीकृष्ण अपनी शक्ति वापस लेना चाहते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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