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श्री भीष्म पितामह -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती
युधिष्ठिर का राजसूय-यज्ञ, श्रीकृष्ण की अग्रपूजा, भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण के स्वरुप तथा महत्तव का वर्णन, शिशुपाल-वधउनके खड़े हो जाने पर सब-के-सब चुप हो जायेंगे। तुम निश्चय समझो, यदि शिशुपाल के कहने से ये लोग यज्ञ में विघ्न करना चाहेंगे तो बहुत ही शीघ्र मारे जायेंगे। जिस तेज के बल पर शिशुपाल तड़क रहा है, श्रीकृष्ण उसे हर लेना चाहते हैं। युधिष्ठिर! श्रीकृष्ण सम्पूर्ण जगत् की उत्पत्ति और संहार के कारण स्वयं नारायण हैं, जो श्रीकृष्ण का अनिष्ट करना चाहते हैं, उनकी बुद्धि बिगढ़ जाती है।' भीष्म पितामह यह बात सबके सामने ही कह रहे थे। शिशुपाल भी सुन रहा था। वह आपे से बाहर हो गया। क्रोधित होकर श्रीकृष्ण को, भीष्म को एवं पाण्डवों को बहुत भला-बुरा कहने लगा। उसकी बात सुनकर भीमसेन को बड़ा क्रोध आया। उनके स्वाभाविक ही लाल-लाल नेत्र और भी फैल गये। वे दाँतों में होंठ चबाने लगे, ललाट पर तीन रेखाएँ स्पष्ट दीखने लगीं। शरीर कांपने लगा, उनकी भयंकर मूर्ति देखकर बहुत-से लोग तो यों ही चुप हो गये। किसी ने बोलने की हिम्मत की भी तो जुबान बंद हो गयी। अब वह समय दूर नहीं था कि भीमसेन शिशुपाल पर आक्रमण कर दें। भीष्म पितामह ने बड़ी शान्ति के साथ अपने लम्बे-लम्बे हाथ फैलाकर उन्हें रोक लिया। उन्होंने मधुर और नीतिसंगत वचन कहकर भीम को शान्त किया। भीमसेन पितामह पर अत्यन्त श्रद्धा और गौरवबुद्धि रखने के कारण उनकी आज्ञा का उल्लंघन नहीं कर सके। उस समय शिशुपाल ने हँसकर कहा-'भीष्म! तुम भीमसेन को रोकने का कष्ट क्यों उठा रहे हो। तनिक छोड़ो तो सही, सब लोग देखें कि भीमसेन मेरे पास आते-ही-आते किस प्रकार जलकर भस्म हो जाता है। भीष्म ने शिशुपाल की बात अनसुनी करके भीमसेन से कहा-'भीमसेन! शिशुपाल के जन्म के समय ही यह बात निश्चित हो चुकी है कि इसकी मृत्यु किसके हाथ से होगी। जब इसका जन्म हुआ था, तब पृथ्वी पर गिरते ही यह गधे की भाँति चिल्लाने और रोने लगा। इसके चार हाथ थे और तीन आँख थीं। माता-पिता और परिवार के सब लोग चिन्तित हो गये कि क्या किया जाये? उसी समय आकाशवाणी हुई कि 'भयभीत होने का कोई कारण नहीं है। इस बालक से तुम्हारा कुछ अनिष्ट नहीं होगा। यह बड़ा बली और श्रीमान् होगा। अभी इसकी मृत्यु नहीं होगी, परंतु इसको मारने वाला पैदा हो चुका है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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