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श्री भीष्म पितामह -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती
वंश परिचय और जन्मयह सृष्टि भगवान का लीला-विलास है। भगवान की ही भाँति इसके विस्तार भेद-उपभेदों का जानना एवं वर्णन करना कठिन है। इस समय हम लोग जिस ब्रह्माण्ड में रह रहे हैं, वह अनन्त आकाश में एक परमाणु से अधिक सत्ता नहीं रखता। इस ब्रह्माण्ड में स्थूल, सूक्ष्म और कारण के भेदों से अनेकों लोक हैं और वे सब पारस्परिक सम्बन्ध से बंधे हुए हैं। हम लोग जिस स्थूल पृथ्वी पर रहते हैं उसकी रक्षा-दीक्षा केवल इस पृथ्वी के लोगों द्वारा ही नहीं होती; बल्कि सूक्ष्म और कारण जगत के देवता-उपदेवता एवं सन्त महापुरुष इसकी रक्षा-दीक्षा में लगे रहते हैं। समय-समय पर ब्रह्मलोक से कारण पुरुष आते हैं और वे पृथ्वी पर धर्म, ज्ञान, सुख एवं शान्ति के साम्राज्य का विस्तार करते हैं। ऐसे कारक पुरुष ब्रह्मा की सभा के सदस्य होते हैं। जो अपनी उपासना के बल पर ब्रह्मलोक में गए होते हैं, वे ब्रह्मा के साथ रहकर उनके काम में हाथ बंटाते हैं और उनकी आयु पूर्ण होने पर उनके साथ ही मुक्त हो जाते हैं। कुछ लोग वहाँ से लौट भी आते हैं तो संसार के कल्याणकारी कामों में ही लगते हैं और एक-न-एक दिन सम्पूर्ण वासनाओं के क्षीण होने पर पुन: मुक्त हो जाते हैं। ब्रह्मलोक में गये हुए पुरुषों में श्री महाभिषक् जी का नाम बहुत ही प्रसिद्ध है। ये परम पवित्र इक्ष्वाकु वंश के एक राजा थे और अपने पुण्य कर्मों के फलस्वरूप इन्होंने इतनी उत्तम गति प्राप्त की है। एक दिन ब्रह्मा की सभा लगी हुई थी। ऋषि-महर्षि, साधू-सन्त, देवता-उपदेवता एवं उसके सभी सदस्य अपने-अपने स्थान पर बैठे हुए थे। प्रश्न यह था कि जगत् में अधिकाधिक शान्ति और सुख का विस्तार किस प्रकार किया जाय ? यही बात सबके मन में आ रही थी कि यहाँ से कुछ अधिकारी पुरुष भेजे जाएँ और वे पृथ्वी पर अवतीर्ण होकर सबका हित करें। उसी समय गंगा नदी की अधिष्ठात्री देवी श्री गंगा जी वहाँ पधारीं। सबने उनका स्वागत किया। संयोग की बात थी, हवा के एक हल्के से झोंके से उनकी साड़ी का एक पल्ला उड़ गया, तुरन्त सब लोगों की दृष्टि नीची हो गयी। भला ब्रह्मलोक में मर्यादा का पालन कौन नहीं करता ! |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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