गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण पृ. 405

गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण

अध्याय-4
ज्ञान-कर्म-संन्यास योग
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विभीषण को लंका के सिंहासन पर अभिषिक्त कर प्रभु श्रीराम पुष्पविमान में बैठकर, चतुर्दश वर्ष की अवधि पूर्ण कर अयोध्या आए और राम-राज्य की स्थापना की। भगवान श्रीराम के आदेश से लक्ष्मण के एक पुत्र अंगद को कारुपथ देश और दूसरे पुत्र चन्द्रकेतु को चन्द्रकान्ता पुरी दी गई; भरत के दोनों पुत्र तक्ष और पुष्कल को तक्षशिला और पुष्कलावती का राज्य प्रदान किया गया। भगवान रामचन्द्र ने निरापद रूप से दस हजार वर्ष तक राज्य किया।

एक बार “काल” तपस्वी ऋषि के वेष में राम से मिलने आया उसने राम से मिलने का निवेदन लक्ष्मण से किया। राम से अनुमति प्राप्त कर लक्ष्मण ने काल दूत की भेंट राम से कराई। उस दूत ने अपना परिचय देते हुए कि “मैं अमित तेजस्वी मुनिश्रेष्ठ अतिबल का दूत हूँ; मेरा नाम महाबल है। मुनि के आदेशानुसार वार्ता गुप्त होगी; यदि तीसरा व्यक्ति हमारी बात सुन भी ले या हमको बात करते देख भी ले तो वह मृत्युदण्ड का भागी बने।” भगवान रामचन्द्र ने लक्ष्मण को आदेश दिया कि जब तक हम दोनों बातें करें तब तक किसी को अन्दर न आने दिया जावे; क्योंकि जो हमारी बात सुनेगा या हमको वार्तालाप करते देखेगा उसे मृत्यु दण्ड दिया जावेगा। जब एकान्त हो गया तो दूत ने भगवान रामचन्द्र से कहा कि, “मुझे लोकस्रष्टा ब्रह्मा ने भेजा है और मैं सृष्टि संहारक महाकाल हूँ। ब्रह्म ने निवेदन किया है कि जिस कार्य के लिए आपने मनुष्य कुल में अवतार धारण किया था वह कार्य पूर्ण हो चुका है अब आप पुनः विष्णु स्वरूप में प्रतिष्ठित हों।”

राम और महाकाल में यह बात हो ही रही थी कि द्वार पर दुर्वासा मुनि ने आकर लक्ष्मण से कहा कि वो राम से मिलना चाहते हैं। लक्ष्मण को विवश होकर राम के पास जाना पड़ा और दुर्वासा मुनि का सन्देश सुनाना पड़ा। इस अपराध में राम ने लक्ष्मण का त्याग कर दिया। लक्ष्मण सरयु नदी के तट पर चले गए और वहाँ योगयुक्त हाकर अदृश्य हो गए। श्रीराम के लव और कुश दो पुत्र थे। कुश को दक्षिण कौशल के राज्य पर और लव को उत्तर कौशल पर अभिषिक्त किया। शत्रुघ्न के पुत्रों में सुबाहु को मथुरा का और शत्रुघाती को विदिशा का राज्य दिया। यह समस्त व्यवस्था निर्धारित कर भगवान राम ने महाप्रस्थान किया और शत्रुघ्न, सुग्रीव, हनुमान, विभीषण, जामवन्त आदि को साथ लेकर सरयू की ओर गए। सरयू तट पर पहुँचते ही ब्रह्मा ने रामागमन की स्तुति की और राम ने शंख-चक्र-गदा-पद्मधारी चतुर्भुज रूप धारण किया। लक्ष्मण प्रभु की शैय्या रूप शेषनाग बने, भरत दिव्य चक्र, शत्रुघ्न शंख बने। इस प्रकार नर रूपधानी पुराण पुरुष श्रीविष्णु अपने भाइयों सहित दिव्य रूप में परिवर्तित हो गए।[1]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. नोटः- श्रीरामावतान का यह वर्णन “वाल्मीकी रामायण, श्रीमद्भागवत तथा रामचरित मानस” के आधार दिग्दर्शन मात्र हेतु सार-रूप में किया गया है।

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अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
- गीतोपदेश के पश्चात भागवत धर्म की स्थिति 1
- भूमिका 66
- महर्षि श्री वेदव्यास स्तवन 115
- श्री गणेश वन्दना 122
1. अर्जुन विषाद-योग 126
2. सांख्य-योग 171
3. कर्म-योग 284
4. ज्ञान-कर्म-संन्यास योग 370
5. कर्म-संन्यास योग 474
6. आत्म-संयम-योग 507
7. ज्ञान-विज्ञान-योग 569
8. अक्षर-ब्रह्म-योग 607
9. राजविद्या-राजगुह्य-योग 653
10. विभूति-योग 697
11. विश्वरूप-दर्शन-योग 752
12. भक्ति-योग 810
13. क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ-विभाग-योग 841
14. गुणत्रय-विभाग-योग 883
15. पुरुषोत्तम-योग 918
16. दैवासुर-संपद-विभाग-योग 947
17. श्रद्धात्रय-विभाग-योग 982
18. मोक्ष-संन्यास-योग 1016
अंतिम पृष्ठ 1142

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