गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण
महाभारत के बाद से गौतम बुद्ध तथा मौर्यवंशी सम्राट अशोक तक भागवत धर्म की स्थितिः- गीतोपदेश, अर्जुन को महाभारत युद्ध शुरू होने से पहिले भगवान कृष्ण द्वारा युद्धस्थल कुरुक्षेत्र में दिया गया था। इस उपदेश के पश्चात् युद्ध आरम्भ हो गया जो 18 दिन में समाप्त हो गया। इन 18 दिनों में समस्त शूरवीर, योद्धा मारे गये, भारत रक्षाहीन हो गया, कोई शक्तिशाली शासक या राजा ऐसा नहीं रहा जो देश को संगठित रूप से रखने में समर्थ हो। परिणामस्वरूप भारत में अराजकता फैल गई, आन्तरिक गृह युद्ध होने लगे, विदेशी जातियों द्वारा बाहर से भयंकर आक्रमण होना आरम्भ हो गया। आन्तरिक अस्तव्यवस्तता तथा बाहरी आक्रमणों के कारण भारत की राजनीतिक, धार्मिक, सामाजिक व्यवस्था बिल्कुल बिगड़ गई और सारे देश में अराजकता फैल गई। गीतोपदेश दीर्घकाल तक लीपिबद्ध न हो सका। इस गीतोपदेश को केवल स्वयं भगवान कृष्ण, वेदव्यास मुनि, अर्जुन, संजय तथा अन्धे कौरवराज धृतराष्ट्र यह पाँच व्यक्ति ही जानते थे। लिपिबद्ध हुए बिना संसार इससे अनभिज्ञ था। अतः सर्व साधारण के अवलोकनार्थ व्यास मुनि ने इसे लिपिबद्ध किया, और इसके प्रचार के उपाय अध्याय 18 श्लोक 68 से 72 में बताए। इन उपायों के अनुसार वैशम्पायन ने महाभारत की कथा अर्जुन के प्रपौत्र तथा परीक्षित के पुत्र हस्तिनापुर के तत्कालीन राजा जनमेजय को ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्त होने को सर्वप्रथम सुनाया था। इससे यह सिद्ध होता है, कि जनमेजय के समय तक अर्थात पाण्डवों की तीसरी पीढ़ी में गीतोपदेश लिपिबद्ध होकर महाभारत काव्य में सम्मिलित हो चुका था। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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