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− | [[भीष्म]] का इतना जीवन-अध्ययन कर लेने के पश्चात् हम नि:संकोच भाव से कह सकते हैं कि भीष्म महात्मा पुरुष हैं। उनका जीवन निष्काम कर्मयोग का मूर्तिमान् स्वरुप है। उनके जीवन में महान् पुरुषार्थ भरा हुआ है। भगवान् पर | + | [[भीष्म]] का इतना जीवन-अध्ययन कर लेने के पश्चात् हम नि:संकोच भाव से कह सकते हैं कि भीष्म महात्मा पुरुष हैं। उनका जीवन निष्काम कर्मयोग का मूर्तिमान् स्वरुप है। उनके जीवन में महान् पुरुषार्थ भरा हुआ है। भगवान् पर उनकी अविचल श्रद्धा है। वे एक क्षण के लिये भी भगवान् को नहीं भूलते और यहाँ तक कि स्वयं भगवान् भी उनका ध्यान करते हैं। उन्हीं भीष्म के द्वारा भगवान् के ज्ञान का विस्तार होने वाला है। यही बात इसके पहले अध्याय में आ चुकी है कि भीष्म ने अपने व्यक्तिगत ज्ञान का उपदेश करना अस्वीकार कर दिया। भगवान् श्रीकृष्ण ने उन्हें अपने ज्ञान का दान किया। अब भीष्म वास्तव में ज्ञान-उपदेष करने के अधिकारी हुए। ऐसे अधिकार पर आरुढ़ होकर जो ज्ञान का उपदेश करता है, वही सच्चा उपदेशक है। यों तो आजकल उपदेशकों की बाढ़ आ गयी है; परंतु कौन है भीष्म-जैसा उपदेशक, जिसे भगवान् का साक्षात् आदेश प्राप्त हुआ है? |
− | पूर्व निश्चय के अनुसार दूसरे दिन सब लोग भीष्म पितामह की शरशय्या के पास उपस्थित हुए। बड़े-बड़े ऋषि-महर्षि पहले से ही आ गये थे। देवर्षि नारद और [[युधिष्ठिर]] की प्रेरणा से भगवान् श्रीकृष्ण ने भीष्म पितामह से वार्तालाप प्रारम्भ किया। श्रीकृष्ण ने कहा-'पितामह! आज की रात में आपको कोई कष्ट तो नहीं हुआ? आपका शरीर पीड़ारहित और मन शान्त है न?' पितामह ने कहा-'श्रीकृष्ण! तुम्हारी कृपा से मोह, दाह, थकावट,उद्वेग और रोग सब दूर हो गये। तुम्हारी कृपादृष्टि के फलस्वरुप मुझे तीनों काल का ज्ञान हो गया है। वेद-वेदान्तोक्त धर्म, सदाचार, वर्णाश्रम-देश-जाति और कुल के धर्म -सब मेरे हृदय में जाग गये हैं। इस समय मेरी बुद्धि निर्मल और चित्त स्थिर है। मैं तुम्हारे चिन्तन से पुन: जीवित हो गया हूँ। अब मैं धार्मिक और आध्यात्मिक प्रश्नों का उत्तर दे सकता हूँ, परंतु एक बात तुमसे पूछनी है, वह यह कि तुमने स्वयं युधिष्ठिर को उपदेश क्यों नहीं दिया?' | + | पूर्व निश्चय के अनुसार दूसरे दिन सब लोग भीष्म पितामह की शरशय्या के पास उपस्थित हुए। बड़े-बड़े ऋषि-महर्षि पहले से ही आ गये थे। [[देवर्षि नारद]] और [[युधिष्ठिर]] की प्रेरणा से भगवान् श्रीकृष्ण ने भीष्म पितामह से वार्तालाप प्रारम्भ किया। [[श्रीकृष्ण]] ने कहा-'पितामह! आज की रात में आपको कोई कष्ट तो नहीं हुआ? आपका शरीर पीड़ारहित और मन शान्त है न?' पितामह ने कहा-'श्रीकृष्ण! तुम्हारी कृपा से मोह, दाह, थकावट,उद्वेग और रोग सब दूर हो गये। तुम्हारी कृपादृष्टि के फलस्वरुप मुझे तीनों काल का ज्ञान हो गया है। वेद-वेदान्तोक्त धर्म, सदाचार, वर्णाश्रम-देश-जाति और कुल के धर्म -सब मेरे हृदय में जाग गये हैं। इस समय मेरी बुद्धि निर्मल और चित्त स्थिर है। मैं तुम्हारे चिन्तन से पुन: जीवित हो गया हूँ। अब मैं धार्मिक और आध्यात्मिक प्रश्नों का उत्तर दे सकता हूँ, परंतु एक बात तुमसे पूछनी है, वह यह कि तुमने स्वयं युधिष्ठिर को उपदेश क्यों नहीं दिया?' |
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16:13, 31 मार्च 2018 के समय का अवतरण
विषय सूची
श्री भीष्म पितामह -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती
पितामह का उपदेशभीष्म का इतना जीवन-अध्ययन कर लेने के पश्चात् हम नि:संकोच भाव से कह सकते हैं कि भीष्म महात्मा पुरुष हैं। उनका जीवन निष्काम कर्मयोग का मूर्तिमान् स्वरुप है। उनके जीवन में महान् पुरुषार्थ भरा हुआ है। भगवान् पर उनकी अविचल श्रद्धा है। वे एक क्षण के लिये भी भगवान् को नहीं भूलते और यहाँ तक कि स्वयं भगवान् भी उनका ध्यान करते हैं। उन्हीं भीष्म के द्वारा भगवान् के ज्ञान का विस्तार होने वाला है। यही बात इसके पहले अध्याय में आ चुकी है कि भीष्म ने अपने व्यक्तिगत ज्ञान का उपदेश करना अस्वीकार कर दिया। भगवान् श्रीकृष्ण ने उन्हें अपने ज्ञान का दान किया। अब भीष्म वास्तव में ज्ञान-उपदेष करने के अधिकारी हुए। ऐसे अधिकार पर आरुढ़ होकर जो ज्ञान का उपदेश करता है, वही सच्चा उपदेशक है। यों तो आजकल उपदेशकों की बाढ़ आ गयी है; परंतु कौन है भीष्म-जैसा उपदेशक, जिसे भगवान् का साक्षात् आदेश प्राप्त हुआ है? पूर्व निश्चय के अनुसार दूसरे दिन सब लोग भीष्म पितामह की शरशय्या के पास उपस्थित हुए। बड़े-बड़े ऋषि-महर्षि पहले से ही आ गये थे। देवर्षि नारद और युधिष्ठिर की प्रेरणा से भगवान् श्रीकृष्ण ने भीष्म पितामह से वार्तालाप प्रारम्भ किया। श्रीकृष्ण ने कहा-'पितामह! आज की रात में आपको कोई कष्ट तो नहीं हुआ? आपका शरीर पीड़ारहित और मन शान्त है न?' पितामह ने कहा-'श्रीकृष्ण! तुम्हारी कृपा से मोह, दाह, थकावट,उद्वेग और रोग सब दूर हो गये। तुम्हारी कृपादृष्टि के फलस्वरुप मुझे तीनों काल का ज्ञान हो गया है। वेद-वेदान्तोक्त धर्म, सदाचार, वर्णाश्रम-देश-जाति और कुल के धर्म -सब मेरे हृदय में जाग गये हैं। इस समय मेरी बुद्धि निर्मल और चित्त स्थिर है। मैं तुम्हारे चिन्तन से पुन: जीवित हो गया हूँ। अब मैं धार्मिक और आध्यात्मिक प्रश्नों का उत्तर दे सकता हूँ, परंतु एक बात तुमसे पूछनी है, वह यह कि तुमने स्वयं युधिष्ठिर को उपदेश क्यों नहीं दिया?' |
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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