('<div class="bgmbdiv"> <h3 style="text-align:center">'''श्री भीष्म पितामह -स्वामी अखण...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
कविता भाटिया (वार्ता | योगदान) |
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आपके समान गुणी मनुष्य संसार में न देखा गया है और न तो सुना गया है। आप अपने तपोबल से जगत् की सृष्टि कर सकते हैं। बन्धु-बान्धवों का संहार होने के कारण धर्मराज [[युधिष्ठिर]] इस समय शोकाकुल हो रहे हैं। आप सभी धर्मों का रहस्य जानते हैं। उनकी शंकाओं का समाधान करने वाला कोई दूसरा नहीं दीखता। आप कृपा करके उनके शोकाकुल चित्त को शान्त कीजिये।' | आपके समान गुणी मनुष्य संसार में न देखा गया है और न तो सुना गया है। आप अपने तपोबल से जगत् की सृष्टि कर सकते हैं। बन्धु-बान्धवों का संहार होने के कारण धर्मराज [[युधिष्ठिर]] इस समय शोकाकुल हो रहे हैं। आप सभी धर्मों का रहस्य जानते हैं। उनकी शंकाओं का समाधान करने वाला कोई दूसरा नहीं दीखता। आप कृपा करके उनके शोकाकुल चित्त को शान्त कीजिये।' | ||
− | भीष्म ने तनिक सिर उठाकर अंजलि बांधकर [[श्रीकृष्ण]] से कहा-'भगवन्! आप समस्त कारणों के कारण और सबके परम निधान हैं। आप प्रकृति से परे और प्रकृति में व्याप्त हैं। आप सबके आश्रय और नित्य एकरस अविनाशी सच्चिदानन्द हैं। आपकी शक्ति अनन्त है। अलसी के फूल के समान आपका साँवला शरीर मुझे बहुत ही प्रिय लगता है। उस पर पीताम्बर की शोभा तो ऐसी मालूम होती है मानो वर्षाकालीन मेघ पर बिजली स्थिर होकर बैठ गयी हो। मैं परम भक्ति से, सच्चे हृदय से आपके शरण हूँ।' | + | [[भीष्म]] ने तनिक सिर उठाकर अंजलि बांधकर [[श्रीकृष्ण]] से कहा-'भगवन्! आप समस्त कारणों के कारण और सबके परम निधान हैं। आप प्रकृति से परे और प्रकृति में व्याप्त हैं। आप सबके आश्रय और नित्य एकरस अविनाशी सच्चिदानन्द हैं। आपकी शक्ति अनन्त है। अलसी के फूल के समान आपका साँवला शरीर मुझे बहुत ही प्रिय लगता है। उस पर पीताम्बर की शोभा तो ऐसी मालूम होती है मानो वर्षाकालीन मेघ पर बिजली स्थिर होकर बैठ गयी हो। मैं परम भक्ति से, सच्चे हृदय से आपके शरण हूँ।' |
− | श्रीकृष्ण ने मुस्कुराते हुए गम्भीर स्वर से कहा-'महात्मन्! आप मेरे दिव्य शरीर का दर्शन कीजिये। आपकी मुझ पर परम भक्ति है, इसी से मैं यह दिव्य शरीर आपको दिखा रहा हूँ। आप मेरे परमभक्त हैं, आपका स्वभाव बहुत ही सरल है, आप तपस्वी, सत्यवादी, इन्द्रियजित् और दानी हैं। इसलिये आप मेरे दिव्य शरीर के दर्शन पाने के अधिकारी हैं। जो मनुष्य भक्तिहीन हैं, कुटिल स्वभाव के हैं और अशान्त हैं, उन्हें मैं दर्शन नहीं देता। आप इस शरीर का परित्याग करके उस दिव्य धाम मे जायेंगे, जहाँ से फिर कभी लौटना नहीं पड़ता। अभी आप छप्पन दिनों तक जीवित रहेंगे। फिर आपको परम पद की प्राप्ति होगी। वसु देवता आकाश में स्थित होकर आपकी रक्षा कर रहे हैं। आपके शरीर-त्याग के पश्चात् आप-सरीखा कोई तत्वज्ञानी नहीं रह जायेगा। इसलिये हम आपके पास आये हैं कि आप अपने अनुभूत सम्पूर्ण ज्ञान का वर्णन कर जायें। इससे आपके अनुभूत धर्म-सिद्धान्त की रक्षा होगी और धर्मराज युधिष्ठिर का शोक भी दूर हो जायेगा।' | + | [[श्रीकृष्ण]] ने मुस्कुराते हुए गम्भीर स्वर से कहा-'महात्मन्! आप मेरे दिव्य शरीर का दर्शन कीजिये। आपकी मुझ पर परम भक्ति है, इसी से मैं यह दिव्य शरीर आपको दिखा रहा हूँ। आप मेरे परमभक्त हैं, आपका स्वभाव बहुत ही सरल है, आप तपस्वी, सत्यवादी, इन्द्रियजित् और दानी हैं। इसलिये आप मेरे दिव्य शरीर के दर्शन पाने के अधिकारी हैं। जो मनुष्य भक्तिहीन हैं, कुटिल स्वभाव के हैं और अशान्त हैं, उन्हें मैं दर्शन नहीं देता। आप इस शरीर का परित्याग करके उस दिव्य धाम मे जायेंगे, जहाँ से फिर कभी लौटना नहीं पड़ता। अभी आप छप्पन दिनों तक जीवित रहेंगे। फिर आपको परम पद की प्राप्ति होगी। वसु देवता [[आकाश]] में स्थित होकर आपकी रक्षा कर रहे हैं। आपके शरीर-त्याग के पश्चात् आप-सरीखा कोई तत्वज्ञानी नहीं रह जायेगा। इसलिये हम आपके पास आये हैं कि आप अपने अनुभूत सम्पूर्ण ज्ञान का वर्णन कर जायें। इससे आपके अनुभूत धर्म-सिद्धान्त की रक्षा होगी और [[धर्मराज युधिष्ठिर]] का शोक भी दूर हो जायेगा।' |
| style="vertical-align:bottom;"| [[चित्र:Next.png|right|link=भीष्म पितामह -अखण्डानन्द सरस्वती पृ. 86]] | | style="vertical-align:bottom;"| [[चित्र:Next.png|right|link=भीष्म पितामह -अखण्डानन्द सरस्वती पृ. 86]] |
16:00, 31 मार्च 2018 के समय का अवतरण
विषय सूची
श्री भीष्म पितामह -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती
श्रीकृष्ण के द्वारा भीष्म का ध्यान,भीष्म पितामह से उपदेश के लिये अनुरोधआपके समान गुणी मनुष्य संसार में न देखा गया है और न तो सुना गया है। आप अपने तपोबल से जगत् की सृष्टि कर सकते हैं। बन्धु-बान्धवों का संहार होने के कारण धर्मराज युधिष्ठिर इस समय शोकाकुल हो रहे हैं। आप सभी धर्मों का रहस्य जानते हैं। उनकी शंकाओं का समाधान करने वाला कोई दूसरा नहीं दीखता। आप कृपा करके उनके शोकाकुल चित्त को शान्त कीजिये।' भीष्म ने तनिक सिर उठाकर अंजलि बांधकर श्रीकृष्ण से कहा-'भगवन्! आप समस्त कारणों के कारण और सबके परम निधान हैं। आप प्रकृति से परे और प्रकृति में व्याप्त हैं। आप सबके आश्रय और नित्य एकरस अविनाशी सच्चिदानन्द हैं। आपकी शक्ति अनन्त है। अलसी के फूल के समान आपका साँवला शरीर मुझे बहुत ही प्रिय लगता है। उस पर पीताम्बर की शोभा तो ऐसी मालूम होती है मानो वर्षाकालीन मेघ पर बिजली स्थिर होकर बैठ गयी हो। मैं परम भक्ति से, सच्चे हृदय से आपके शरण हूँ।' श्रीकृष्ण ने मुस्कुराते हुए गम्भीर स्वर से कहा-'महात्मन्! आप मेरे दिव्य शरीर का दर्शन कीजिये। आपकी मुझ पर परम भक्ति है, इसी से मैं यह दिव्य शरीर आपको दिखा रहा हूँ। आप मेरे परमभक्त हैं, आपका स्वभाव बहुत ही सरल है, आप तपस्वी, सत्यवादी, इन्द्रियजित् और दानी हैं। इसलिये आप मेरे दिव्य शरीर के दर्शन पाने के अधिकारी हैं। जो मनुष्य भक्तिहीन हैं, कुटिल स्वभाव के हैं और अशान्त हैं, उन्हें मैं दर्शन नहीं देता। आप इस शरीर का परित्याग करके उस दिव्य धाम मे जायेंगे, जहाँ से फिर कभी लौटना नहीं पड़ता। अभी आप छप्पन दिनों तक जीवित रहेंगे। फिर आपको परम पद की प्राप्ति होगी। वसु देवता आकाश में स्थित होकर आपकी रक्षा कर रहे हैं। आपके शरीर-त्याग के पश्चात् आप-सरीखा कोई तत्वज्ञानी नहीं रह जायेगा। इसलिये हम आपके पास आये हैं कि आप अपने अनुभूत सम्पूर्ण ज्ञान का वर्णन कर जायें। इससे आपके अनुभूत धर्म-सिद्धान्त की रक्षा होगी और धर्मराज युधिष्ठिर का शोक भी दूर हो जायेगा।' |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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