श्रीमद्भगवद्गीता -विश्वनाथ चक्रवर्त्ती पृ. 16

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श्रीमद्भगवद्गीता -विश्वनाथ चक्रवर्त्ती
प्रथम अध्याय

तस्य संजनयन् हर्ष कुरुवृद्ध: पितामह: ।
सिंहनादं विनद्योच्चै: शङ्खं दध्मौ प्रतापवान् ॥12॥

अनुवाद- इसके बाद बड़े प्रतापी कुरुकुल में ज्येष्ठ पितामह भीष्म ने दुर्योधन के हृदय में आनन्द उत्पादन करते हुए सिंह की भाँति गर्जनकर उच्च स्वर से शङ्खनाद किया॥12॥

भावानुवाद - तदनन्तर दुर्योधन के द्वारा द्रोणाचार्य के पास अपनी प्रशंसा सुनकर पितामह भीष्म बड़े प्रसन्न हुए। दुर्योधन का भय दूर करने तथा हर्षोत्पादन के लिए कुरुवृद्ध भीष्म ने सिंह की भाँति विशेष शंख ध्वनि की।।12।।

 
तत: शाङ्ख्श्च भेर्यश्च पणवानकगोमुखा: ।
सहसैवाभ्यहन्यन्त स शब्दस्तुमुलोऽभवत् ॥13॥
इसके पश्चात शंख और नगारे तथा ढोल, मृदंग और नरसिंघे आदि बाजे एक साथ ही बज उठे। उनका वह शोर बड़ा भयंकर हुआ ॥13॥

भावानुवाद- उसके बाद दोनों ही पक्षों का युद्ध के प्रति उत्साह देखा गया। इसलिए ही ‘ततः’ इत्यादि शब्द कह रहे हैं। यहाँ पणवाः, आनकाः तथा गोमुखाः का तात्पर्य क्रमशः ढोल, मृदंग तथा रणशिंगा से है।।13।।

तत: श्वेतैर्हयैर्युक्ते महति स्यन्दने स्थितौ ।
माधव: पाण्डवश्चैव दिव्यौ शङ्खौ प्रदध्मतु: ॥14॥
पाज्चजन्यं ह्रषीकेशो देवदत्तं धनंजय: ।
पौण्ड्रं दध्मौ महाशख्ङं भीमकर्मा वृकोदर: ॥15॥
इसके अनन्तर सफ़ेद घोडों से युक्त उत्तम रथ में बैठे हुए श्रीकृष्ण महाराज और अर्जुन ने भी अलौकिक शंख बजाये ॥14॥
श्रीकृष्ण महाराज ने पाज्चजन्य नामक, अर्जुन ने देवदत्त नामक और भयानक कर्म वाले भीम ने पौण्ड्र नामक महाशंख बजाया॥15॥

सारार्थ वर्षिणी प्रकाशिका वृत्ति- पाञ्चजन्य- श्री कृष्ण ने गुरु गृह में अपने शिक्षा समाप्त करने के बाद गुरु दम्पती से कुछ गुरु-दक्षिणा ग्रहण करने के लिए अनुरोध किया। उन्होंने गुरु-दक्षिणा के रूप में समुद्र में डूबकर शरीर छोड़ने वाले अपने पुत्र को जीवित रूप में प्राप्त करने के लिए आदेश किया। श्री कृष्ण ने समुद्र के अधिष्ठातृ देवता वरुण से अनुसन्धान पाकर समुद्र में रहने वाले पञ्चजन्य नामक असुर को मारा, जिसने गुरु पुत्र को निगल लिया था, किन्तु गुरु पुत्र उसके पेट में प्राप्त नहीं हुआ। श्री कृष्ण ने वहाँ से महाकालपुरी में उपस्थित होकर वहाँ से गुरु पुत्र को लाकर उसे दक्षिणा के रूप में गुरुदेव को प्रदान किया। श्री कृष्ण ने पञ्चजन्य के बाह्य अंग को ही अपने पाञ्चजन्य शंख के रूप में ग्रहण किया।।15।।

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श्रीमद्भगवद्गीता -विश्वनाथ चक्रवर्त्ती
अध्याय नाम पृष्ठ संख्या
पहला सैन्यदर्शन 1
दूसरा सांख्यायोग 28
तीसरा कर्मयोग 89
चौथा ज्ञानयोग 123
पाँचवाँ कर्मसंन्यासयोग 159
छठा ध्यानयोग 159
सातवाँ विज्ञानयोग 207
आठवाँ तारकब्रह्मयोग 236
नवाँ राजगुह्मयोग 254
दसवाँ विभूतियोग 303
ग्यारहवाँ विश्वरूपदर्शनयोग 332
बारहवाँ भक्तियोग 368
तेरहवाँ प्रकृति-पुरूष-विभागयोग 397
चौदहवाँ गुणत्रयविभागयोग 429
पन्द्रहवाँ पुरूषोत्तमयोग 453
सोलहवाँ दैवासुरसम्पदयोग 453
सत्रहवाँ श्रद्धात्रयविभागयोग 485
अठारहवाँ मोक्षयोग 501

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