रास पंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार पृ. 184

श्रीरासपंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार

दूसरा अध्याय

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मालत्यदर्शि व: कच्चिन्मल्लिके जाति यूथिके।
प्रीतिं वो जनयन्‌ यात: करस्पर्शेन माधव:।।8।।

गोपियों ने समझा तुलसी श्रीकृष्ण को अति प्यारी है, इसको उनका अवश्य पता होगा। पर जब उसने भी कोई उत्तर नहीं दिया, तब वे सुगन्धित पुष्पों वाले पौधों से पूछने लगीं - सोचा कि श्रीकृष्ण को इनके पुष्प बहुत प्रिय लगते हैं, अतः इनको पता होगा। हे मालती! चमेली! जूही! तुम्हारे सुन्दर, सुगन्धित पुष्पों का चयन करते समय अपने कोमल करों से स्पर्श करके तुम्हें आनन्द देते हुए क्या हमारे प्रियतम माधव को तुमने इधर से जाते देखा है?।।8।।

चूतप्रियालपनसासनकोविदार-
जम्ब्वर्कबिल्वबकुलाम्रकदम्बनीपा:।
येऽन्ये परार्थभवका यमुनापकूला:
शंसन्तु कृष्णपदवीं रहितात्मनां न:।।9।।

पुष्प लताओं से भी जब उत्तर नहीं मिला, तब यह सोचकर कि बड़े-छोटे सभी वृक्ष दीन-दुखियों के उपकार में ही सदा लगे रहते हैं, हम सब दुःख संतप्त हैं, अतः इनके स्वभाव की स्मृति कराते हुए इन वृक्षों से पूछें, वे उनसे बोलीं - हे रसाल, प्रियाल, कटहल, पीतशाल, कचनार, जामुन, आक, बेल, मौलसिरी, आम, कदम्ब, नीम और यमुना तट पर विराजमान अन्यान्य तरुवरों! तुमने तो केवल परोपकार के लिये ही जीवन धारण किया है। हमारा हृदय श्रीकृष्ण के बिना सूना हो रहा है; अतएव हम तुम लोगों से प्रार्थना करती हैं कि तुम कृपा करके श्रीकृष्ण का पता हमें बता दो।।9।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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