विषय सूची
श्रीरासपंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार
दूसरा अध्याय
दृष्टो व: कच्चिदश्वत्थ प्लक्ष न्यग्रोध नो मन:। व्रजसुन्दरियों ने पहले बड़े-बड़े वृक्षों के पास जाकर उनसे पूछा - ‘हे पीपल, पाकर, वट! नन्दनन्दन श्यामसुन्दर अपनी प्रेम भरी मुस्कान तथा चितवन से हम लोगों के मन चुराकर कहीं चले गये हैं, क्या तुम लोगों ने उनको देखा है?।।5।। कच्चित् कुरबकाशोकनागपुंनागचम्पका:। हे कुरबक! अशोक! नागकेशर! पुंनाग! चम्पक! जिनकी मधुरतम मुस्कान मात्र से बड़ी-बड़ी मानिनी रमणियों का दर्प चूर्ण हो जाता है, वे बलराम जी के छोटे भाई श्रीकृष्णचन्द्र इधर से गये हैं क्या? ।।6।। कच्चित्तुलसि कल्याणि गोविन्दचरणप्रिये। जब इन पुरुषजातीय वृक्षों से उत्तर नहीं मिला, तब उन्होंने स्त्रीजाति के पौधों से पूछा - ‘बहिन तुलसी! तुम तो कल्याणमयी हो, सबका कल्याण चाहती हो। तुम्हारा श्रीगोविन्द के चरणों में बड़ा प्रेम है और वे भी तुमसे प्रेम करते हैं; इसीलिये भ्रमरों से घिरी हुई तुम्हारी माला को सदा हृदय पर धारण करते हैं। उन अपने प्रियतम अच्युत-जो अपने प्रेम-स्वभाव से कभी च्युत नहीं होते - श्यामसुन्दर को क्या तुमने इधर से जाते देखा है?।।7।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज