रास पंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार पृ. 233

श्रीरासपंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार

रासलीला (पदों में)

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थीं वे विकसित शारदीय

थीं वे विकसित-शारदीय-मल्लिका-सुमन-शोभित रजनी।
देख उन्हें कर प्रकट ‘योगमाया’-‘अचिन्त्य निज शक्ति’ धनी।।
षडैश्वर्य भगवान पूर्ण ने किया तुरत संकल्प महान।
रमण-‘रसास्वादन, स्वरूप-वितरण’ का, कर सबको रस-दान।।
दीर्घकाल पर दे दर्शन निज प्यारी को जैसे प्रियतम।
रँग दे केसर से उसका मुख-मण्डल निज कर सुखद परम।।
वैसे प्राची दिशा-सुमुखि मुख सुखद स्वकिरण-अरुण से रंग।
उदय हुआ विधु जग-जीवों का ताप मिटाता शीतल अंग।।
लक्ष्मी-मुख-सम शोभित नव कुङ्कुम-सम अरुण-वर्ण शशि देख।
विधुकी कोमल किरणावलि से उद्भासित अरण्य को लेख।।
मधुर-मनोहर नेत्रवती शुचि व्रज-सुन्दरियों का मन-हर।
किया विचित्र वेणु-वादन माधव ने सुललित मधुर-स्वर।।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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