रास पंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार पृ. 240

श्रीरासपंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार

रासलीला (पदों में)

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उदय हुए जब श्रीवृन्दावन

उदय हुए जब श्रीवृन्दावन-चन्द्र पूर्णतम चन्द्रस्वरूप।
उज्ज्वल स्निग्ध सुधामयि शीतल किरणें लहरा उठीं अनूप।।
पूर्ण पूर्णिमा प्रकटी पावन, हुआ अविद्या-तमका नाश।
प्रेम-प्रभा हुई उद्भासित, छाया शुद्ध सत्त्व-उल्लास।।
पावन यमुना-पुलिन प्रकट हो, छेड़ी मोहिनि मुरली-तान।
किया श्याम ने प्रेममूर्ति व्रज-सुन्दरियों का प्रिय आह्वान।।
भूल गयीं अग-जग को, भूलीं देह-गेह का सारा भान।
जो जैसे थी, वैसे ही चल पड़ी, छोड़ लज्जा-भय-मान।।
होता उदय मधुर रस नव-नव रूपों में जब कृष्णानन्द।
रुक पाता न पलक प्रेमीका तब रस-लोलुप मन स्वच्छन्द।।
नहीं खींच पाता फिर उसको भुक्ति-मुक्ति का कोई राग।
प्रेम-सुधा-रस-मत्त दौड़ पड़ता, वह सहज सभी कुछ त्याग।।
प्रियतम के प्रिय मधुर-नाम-गुण लीला-कथा सुधा-रस मग्न।
सर्व-समर्पित होता उसका, होता सहज मोह-भ्रम भग्न।।
राधामुख्या भावमयी सब व्रजसुन्दरियाँ कर अभिसार।
पहुँचीं तुरत श्याम-चरणों में उन्मादिनी हो मधुर उदार।।
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