रास पंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार पृ. 160

श्रीरासपंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार

रास-विलास

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कुसुमित कुंज कल्पतरु-कानन मनिमय अजिर सुहावन।
रास-विलास-निरत नट-नागर गोपी-जल-मन-भावन।।
बिमल बिनोदिनि बचन-बिदग्धा मुग्धा नागरि नारी।
नित नव तरुनि, नटिनि निरुपम, नित मनमोहन-मनहारी।।
कोटि-कोटि कामिनि, दामिनि घन संग सुसोभन साजै।
मन्मथ-मन्मथ मुरलि-मनोहर द्वै-द्वै के बिच राजै।।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पद-रत्नाकर, पद सं० 267

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