श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ
श्रीरास-लीला(श्लोक)
हे पुत्र, “एकं तेजो भवेद् द्वेधा, राधामाधवरूपकम्” एक ही सच्चिदानंद श्रीस्यामसुंदर ‘श्रीराधा’ नामक अपने ही रूप सौं बिराजै हैं और सखी तौ श्रीराधारानी की बहु मूर्ति मात्र हैं। “गोप्यस्तु श्रुतयो ज्ञेया ऋषिजा देवकन्यकाः।” इनमें हू कोई श्रुतिरूपा हैं, कोई ऋषिरूपा हैं। अर्थात् श्रुतिन ने और ऋषिन ने बहुत काल ताईं तप करिकैं बैकुंठ में भगवान् सौं यही वर माँग्यौ कि-
‘हे प्रभो! हम गोपीन की नाईं आप कूँ अपनो रमण मानि कैं सेवै।’ तब भगवान् ने यह वर दियौ-
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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