श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ
श्रीरास-लीलाशंकरजी- हाँ, पुत्र! निश्चै रासक्रीड़ा करैं हैं।
अर्थात् अहो, मैं, जिन गुल्म-लतादिकन कूँ श्रीब्रजदेवीन की चरणरज प्राप्त होय है, विनमें ते कोऊ लता-गुल्मादिकन को जन्म प्राप्त करनौ चाहूँ हूँ। कारण जब श्रीस्यामसुंदर की वंशीधुनतें मोहित है कैं ये ब्रजगोपी उनके दरसन करिवे चलैंगी तौ वा समय बृंदाबन में यदि मैं कोउ लता होऊँगो तौ श्रीब्रजदेवीन की चरण-रज मेरै ऊपर परिवे सों मैं कृतार्थ है जाऊँगो। ब्रजगोपीन कौ सौ प्रेम तौ मैंने श्रीस्यामसुंदर में हू न देख्यौ है न सुन्यौ है और या प्रेम की प्रसंसा तौ स्यामसुंदर हू करैं हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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