मंगलाचरण
(श्लोक)
कदा वा खेलन्तौ व्रजनगरवीथीषु हृदयं
हरन्तौ श्रीराधाव्रजपतिकुमारौ सुकृतिनः।
अकस्मात् कौमारे प्रकटनवकैशोरविभवौ
प्रपश्यन्पूर्णः स्यां रहसि परिहासादिनिरतौ।।
अर्थ- कहा कबहूँ मैं श्रीराधा और श्रीब्रजपति-कुमार कौ दरसन करि कैं पूर्णता कूँ प्राप्त होऊँगौ? जो काऊ समय व्रज-नगर की बीथी में खेलत फिरत एकांत पाय अचानक कुमार-अवस्था कूँ त्यागि कैं नव किसोरता के वैभव कूँ प्रगट करि दिव्य हास-परिहास मैं संलग्न है गये हैं एवं जो अपनी ऐसी प्रेम के लिए सौं सुकृती-जनन के हृदय कौ अपहरन करि रहे हैं।
(दोहा)
समाजी-
- एक समय भांडीर बट सुतहि लिऐं नँद गोद ।
- धेनु-निरीच्छन करन कौं पहुँचे अति मन मोद ।।