राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 304

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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श्रीरज-रसाल-लीला

मंगलाचरण

(श्लोक)

यज्जापः सकृदेव गोकुलपतेराकर्षकस्तत्क्षणाद्यत्र
प्रेमवतां समस्तपुरुषार्थेषु स्फुरेत्तुच्छता।
यन्नामाङ्कितमन्त्रजापनपरः प्रीत्या स्वयं माधवः
श्रीकृष्णोऽपि तदद्भुतं स्फुरत मे राधेति वर्णद्वयम्।।

अर्थ- जाकौ एक बार मात्र उच्चारन गोकुल पति श्रीकृष्ण कूँ तत्क्षण आकर्षित करिबेवारौ है, जासौं प्रेमिन के ताईं अर्थ, धर्मादि समस्त पुरुषार्थन में तुच्छता कौ स्फुरण हैवे लगै है, एवं जा नाम सौं अंकित मंत्रराज (द्वाद्वशाक्षर-मंत्र) के जपिवे में माधव श्रीकृष्ण हूँ सदा-सर्वदा प्रीति-पूर्वक संलग्न रहैं हैं। वे ही अत्युद्भुत द्वै वर्ण ‘राधा’ मेरे हृदय में स्फुरित होयँ।

(दोनों जुगल स्वरूप सिंहासन पै बिराजैं हैं)

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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