राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 318

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

Prev.png

प्रेमाधीनता-रहस्य

श्रीकृष्ण-

(प्रवचन)
(पद)

मैं निज भक्तन हाथ बिकाऊँ।
आठौं जाम हृदय में राखूँ पलक नहीं बिसराऊँ।।
भक्तन की जैसी रुचि देखूँ, तैसौहि भेष बनाऊँ।
टारूँ अपने बचन भक्त लगि, तिनके बचन निभाऊँ।।
ऊँच-नीच सब कर्म भक्त के निज कर सकल बनाऊँ।
रथ हाँकूँ, पग धोऊँ, बासन माँजूँ, छान छबाऊँ।।
माँगूँ नहीं दाम कछु तिन सौं नहिं कछु तिनहि सताऊँ।
प्रेम सहित जल पत्र पुष्प फल, जो देवैं सो खाऊँ।।
निज सरबस्व भक्त कूँ सौंपूँ, अपनौं स्वत्व भुलाऊँ।
भक्त कहें सिध करूँ निरंतर, बेचैं तो बिक जाऊँ।।

अहो! धन्य है या प्रेम कूँ। यह प्रेम मोकूँ अव्यक्त सौं व्यक्त तथा गुप्त सौं प्रगट करि देय है। स्वामी ते सेवक तथा साहु ते रिनियाँ बनाय देय है।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः