राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 100

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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श्रीरास-लीला

यासौं हे पुत्र! गोपीन के प्रेम में लौकिक प्रेम की तौ गंध हूँ नायँ है।
आसुरिजी- हे स्वामिन्! आपनै तौ बड़ौ सुंदर आख्यान सुनायौ, अब रास कौ समय है गयो है। ये आनंद अवस्य अनुभव करिबे जोग्य है, सो कहूँ एकान्त स्थान में ठाड़े है कैं या रास कौ निर्बिघ्न आनंद प्राप्त करैं।
शंकरजी- हे पुत्र, रास देखिबै कौ सब कूँ अधिकार नायँ है- तू अपनै कू बड़ो अधिकारी मानिबे की भूल मत करै।
आसुरिजी- तौ हे प्रभो! रास के अधिकारी कौन हैं? और मैं कैसे बनि सकूँ हूँ?
शंकरजी- हे पुत्र, सावधान है कैं सुन।
(पद)

प्रथम सुनैं (श्री) भागवत भक्तमुख भगवद्बानी ।
दितिय अराधै भक्ति ब्यास नव भाँति बखानी।।
तृतिय करै गुरु समुझि दच्छ सर्बग्य रसीलौ।
चौथें होय बिरक्त बसै बन राज जसीलौ।।
पाँचें भूले देह-सुधि, छठें भावना रास की।
सातें पावै रीति-रस श्री स्वामी हरिदास की।।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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