राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 33

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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श्रीसाँझी-लीला

(श्रीजी कौ अंचल फूल बीनत में एक बृच्छ की डारी सौं उरझि जाय। तब श्रीजी सब सखीन कौ नाम लै लै कैं हेला दैं, परंतु कोई सकी नहीं सुनै। तब उन लता-कुंजन सौं ठाकुर जी पधारि कैं वा वस्त्र कूँ सूरझाय दैं और इकटक श्रीराधा -मुख चंद्र के दरसन करते रहें)
पद (राग शुद्ध सारंग, ताल धमार)

आनँद सिंधु बढ़यौ हरि तन में।
राधा-मुख पूरन ससि निरखत उमगि चल्यौ ब्रज बृंदाबन में ।।
इत रोक्यौ जमुना, उत गोपिन, कछूक फैलि पर्यौ तिभुवन में ।
ना परस्यौ करमठ अरु ग्यानी, अटकि रह्यौ रसिकन के मन में ।।
मंद-मंद अवगाहत बुधि-बल भक्त हेतु लीला छिनु-छिनु में ।
कछुक लह्यौ नँदसूनु कृपा तें, सो देखियत परमानँद जन में ।।

(दोहा)

मिलत नवावत नव लता, अंचल छुटत दुकूल ।
इत-इत बाढ़ी दुहुन मन फूलन बीनत फूल ।।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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