राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 32

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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श्रीसाँझी-लीला

प्रिये! जब-जब आप या बन में पधारौ हौ, तब ही तब यहाँ अद्भुत सी बात देखिबे में आवै है। या बन के फूल-फल, बेलि बीरूध आप के दरसन करत ही प्रफुल्लित है जायँ है। बृच्छन पै बैठे तोता, पपैया, कोकिलाएँ मधुर-मधुर सुर सौं बोलि कैं फूल झरावैं हैं, मानौं ये आपकी फूलन सौं सेवा करि रहे होयँ, और इन बृच्छन की डारैं फूलनि तथा फलनि के भार सौं झुकि कैं धरती कूँ छी रही हैं, मानौं ये बृच्छ अपनी डारी रूप हाथन में फल लैकैं आप के चरनन में भेट करि रहे होयँ। और ये मतवारे भौंरा कैसी मधुर गुंजार करि रहे हैं, मानौं या बन में आप के पधारिबे सों प्रसन्न होय हृदय की हुलास सौं आप के निर्मल जस कौ गान करि रहे होयँ।

श्रीजी- सखीयौ! अब तुम सब न्यारी-न्यारी भाँति के फूल लाऔ, और मैं इत माऊँ जमुना तट की कुंजन में सौं सुंदर फूल लाऊँ हूँ।

समाजी-

(दोहा)

हरषि फूल वीनत अली, डलिया काँख लगाय ।
नबल बाल बृषभानु की न्यारे चली सुभाय ।।
औचक पट अरुझयौ प्रिया, परसि कटीली डारि ।
कहँ ललिता चंपकलता, कहत पुकारि-पुकारि ।।
सघन मालती कुंज, तहँ ठाड़ी लली सुजान ।
नबल कुमार ब्रजराय कौं दई दिखाई आन ।।
नैननि सौं नैना मिले, इकटक रहे निहारि ।
इन अरुझी अँखियान कौं कौन सकै निरवारि ।।
तब नागर नँदलाल नें पट दीयौ सुरझाय ।
पै मन अरुझयौ दुहुँन कौ, घर कौं चल्यौ न जाय ।।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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