राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 300

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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श्रीचंद्रावली-लीला

[दोनों श्रीचंद्रावलीजी के दर्शन करि कैं पधारैं]
सखी- कहौ प्रिय चंद्रावली! आज कैसैं उदास हौ, कहा सोच है?
चंद्रावली- मोकूँ कछु सोच नहीं है।
सखी- बलिहारी! तुमहीं सब चतुराई पढ़ी हौ, हम तौ मूर्ख हैं।
चंद्रावली- यदि कछु सोच होतौ मैं तोसौं थोरें ही छिपावती।
सखी- बस, इतनी ही तौ कसर है, यदि तू मोहि अपनी प्यारी सखी समझती तौ-
चंद्रावली- [हाथ सौं सखी कौ मुख बंद करि कैं-] बस चुप्प रह, तोतें अधिक और कौन प्यारी है।
सुखी- मैं हूँ याही ब्रज में रहूँ हूँ और सब रंग ढंगन कूँ देखूँ हूँ तेरौ। मुख ही कहि रह्यौ है कि तोकूँ सोच है, और फिर, सोच है।
चंद्रावली- सो मेरौ मुख कहा कहि रह्यौ है?
सखी- तू काहू की प्रीत में फँसी है।
चंद्रावली- बलिहारी! बलिहारी!
सखी- बलिहारी सौं काम नहीं चलैगौ, अंत में मैं ही काम आऊँगी, तेरो रोग की औषधि मो वैद्य के पास ही मिलैगी।
चंद्रावली- औषधि तौ तू जब देयगी न कि मेरे कछु रोग होय।
सखी- फिर वो ही बात? भगवान् ने दो आँखि मोहू कूँ दई हैं। मैं कछू ईंट-पत्थर की नहीं हूँ।
चंद्रावली- यह कौन कहै कि तू ईंट-पत्थर की है?
सखी- तौ सुनि। या ब्रज में वासौं वही बची होयगी, जो ईंट-पत्थर की होयगी।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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