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श्रीचंद्रावली-लीला
चंद्रावली- सो कौन ते?
सखी- जाके पीछें तेरी यह दशा है।
चंद्रावली- सो कौन के पीछें मेरी यह दशा है?
सखी- अरी मेरी अलक लड़ैती! ये आँखि इतनी बुरी है कि जब काहू सौं लगि जायँ तौ छिपाये ते नहीं छिपै। चल, घर चल! और कोई सखी देखैगी तौ हाँसी करैगी।
- चंद्रावली-
(पद)
- मत मेरे मन से पूछौ ये दुख-भरी कहानी।
- बिरहा की पीर जानैं, बिरहा की जो दिवानी।।
- मरते हैं क्यों पतिंगे दीपक के साथ जलकर,
- जलहीन मीन क्योंकर मरती तड़प-तड़प कर,
- इस प्रेम के पथिक की ये रीत है पुरानी।।1।।
- घनस्याम के बिरह में ये दिल हुआ दिवाना,
- परवाह क्या किसी की, रूठै अगर जमाना,
- पीछे नहीं हटेगी ये स्याम की दिवानी।।2।।
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