राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 252

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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श्रीप्रेम-सम्पुट लीला

श्रीजी- तौ आपके चित्त कौ हठ जैसें दूर होय मैं वही करूँ।
देवी- बहिन, आप तौ यहाँ हौ और आपके प्यारे नंदग्राम में कहूँ गऊँ चराय रहे होयँ, आप अब यहीं ते उन्हें स्मरन करौ। वे सीघ्र यहाँ चले आवैं, तब मैं आपकूँ और आपके प्यारे कूँ एक प्रान, द्वै देह समझूँगी।
श्रीजी- हे सखी! आप क्यों हमारी हाँसी करौ हौ।
देवी- हे राधे, मैं हाँसी नायँ करूँ। यह तौ आपकूँ करनौ ही होयगौ।
श्रीजी- अच्छौ, बहिन, मैं ऐसे ही करूँगी, नहीं तौ मेरौ प्रेम लज्जित होयगौ।
(श्रीजी नेत्र बंद करि पद्मासन सौं बिराजि ध्यान करैं।)
‘हे देवाराध्य! हे भास्कर! हे सर्वकामद! जो मैं और स्यामसुंदर एक ही आत्मा होयँ और यह मेरी कही सब लीला सत्य होय तो प्रियतम सीघ्र मेरे नयनगोचर होंय।’
(ठाकुरजी छद्म बेस त्यागि कैं पधारते भये)
ठाकुरजी- हे प्यारी! यह आप कहा करि रही हौ?
सखी- हे प्रियतम, आप यहाँ अलक्षित हैकैं कैसैं चले आये? बड़ौ आस्चर्य है, यह अंतःपुर तो कुलबधून कू हूँ अगम्य है। ऐसे दुष्प्रेबेस अन्तःपुर में आप निर्भय हैकैं चले आये, आपकूँ कोई भय नहीं लग्यौ? हमारी प्यारी मित्र-पूजा के ताईं दोनूँ नैन मूँदि आसन पै बिराजी हतीं सो आपनै आय कैं अंग-स्पर्श करि लीना, लोक की लाज, कुल की कान कछु समझी नहीं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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