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श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ
श्रीप्रेम-सम्पुट लीलाजैसैं तेल तें परिपूर्न एक पात्र में दो मुखवारी बत्ती परस्पर के मूल में रहिबेवारे अंधकार कौ नास करै है, ऐसें ही एक आत्मारूपी पात्र में स्नेहरूपी तेल कूँ लैबेवारी प्रानरूपी बाती में हम सदा प्रफुल्लित रहैं हैं। जैसैं दीपक की लोय बायु लगिबे ते कंपायमान है जाय और जब वाकूँ निर्वात स्थान में धरैं हैं तब स्थिर है जाय है, ऐसें ही कदाचित बिरह बायु तैं हम दोनौं एक काल में मूर्च्छित होय हैं वा समय सब चतुर सखीगन बिरहरूप पवन के निवारन कौ जतन करैं और संजोगरूप निर्वात स्थान में स्थापित करैं हैं। हे कल्यानी, मैंने हृदयरूपी संपुट कूँ खोलि कैं आपके संदेहरूपी अंधकार कूँ दूर करिवे कूँ यह रहस्य दिखायौ सो आप याकूँ हृदै में ही राखियौं, बाहर प्रकासित मत करियौं।
(दोहा)
हे राधिके, आप जब बोलौ हौ, सब जुक्त-ही-जुक्त बोलौ हौ, तुम्हारी सब बात धारन करिवे जोग्य है; परंतु मेरे चित्त ने तौ यह हठ पकरी है कि आपकी लीला कूँ साक्षात् देखनौ चाहै है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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