राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 251

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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श्रीप्रेम-सम्पुट लीला

जैसैं तेल तें परिपूर्न एक पात्र में दो मुखवारी बत्ती परस्पर के मूल में रहिबेवारे अंधकार कौ नास करै है, ऐसें ही एक आत्मारूपी पात्र में स्नेहरूपी तेल कूँ लैबेवारी प्रानरूपी बाती में हम सदा प्रफुल्लित रहैं हैं। जैसैं दीपक की लोय बायु लगिबे ते कंपायमान है जाय और जब वाकूँ निर्वात स्थान में धरैं हैं तब स्थिर है जाय है, ऐसें ही कदाचित बिरह बायु तैं हम दोनौं एक काल में मूर्च्छित होय हैं वा समय सब चतुर सखीगन बिरहरूप पवन के निवारन कौ जतन करैं और संजोगरूप निर्वात स्थान में स्थापित करैं हैं। हे कल्यानी, मैंने हृदयरूपी संपुट कूँ खोलि कैं आपके संदेहरूपी अंधकार कूँ दूर करिवे कूँ यह रहस्य दिखायौ सो आप याकूँ हृदै में ही राखियौं, बाहर प्रकासित मत करियौं।

देवी-

(दोहा)

परम चतुर हौ, राधिका! जुक्ति भरी तुअ बात।
कहा करूँ, मो मन हर्यौ, मानत नायँ सकात।।

हे राधिके, आप जब बोलौ हौ, सब जुक्त-ही-जुक्त बोलौ हौ, तुम्हारी सब बात धारन करिवे जोग्य है; परंतु मेरे चित्त ने तौ यह हठ पकरी है कि आपकी लीला कूँ साक्षात् देखनौ चाहै है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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