राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 253

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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श्रीप्रेम-सम्पुट लीला

ठाकुरजी- हे ललिते, या में मेरौ कहा दोष है? मैं तो अपनी खिरक के निकट खेलि रह्यौ हतौ, मोकूँ यहाँ तत्क्षन कोई देवता पकरि लायौ।

श्रीजी- हे ललिते, वह देबी कहाँ है? वाकूँ अब हू बिस्वास भयो कि नहीं?

ललिता- हे प्यारी! वो देबी तो आपके दरसन ध्यान सौं सब वाधान सौं रहित हैकैं या घर के मध्य में प्रबेस करि गई।

ठाकुरजी- ओहो, प्यारी, आपमें ये बात हैं। आपके यहाँ कोई सिद्धनी अथवा खेचरी देबी आवै है, अवश्य वाके निकट रहिकैं कोई सखी मंत्र सीखै है। तब ही मंत्र सिद्ध करि मोकूँ आकर्षत करि दास बनाय लियौ है। हे प्यारी, अब वह मंत्र मोकूँ हू बताऔ जासौं मैं हू काहू कूँ आकर्षन करूँ।

श्रीजी- हे प्यारे, आपने तौ एक बंसी देवी कूँ ही ऐसी सिद्ध करि राखी है, जो सब कूँ आकर्षन करि लावै है। हे सखी ललिते, यो देवी कहाँ है? वाकूँ सीघ्र बुलावौ।

सखी- हे प्यारी, वा देबी में ते तौ ये देवा प्रगट है गये।

श्रीजी- क्यों प्यारे?

ठाकुरजी- हाँ प्यारी, आपके दरसनन के लिए रात-दिनों जुक्ति सोचत रहूँ हूँ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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