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श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ
श्रीप्रेम-सम्पुट लीला
हे श्रीराधिके, प्रानप्रतिपालिके, सुनौं। जद्यपि बंसी-धुनि कौ प्रभाव तौ ऐसौ ही है, और आप सत्य ही कहौ हौ, परंतु धर्म सृंखला मेरे हृदय कूँ बिलोय रही है। और लोक पतिब्रत धर्म में मेरी आत्मा फँसि रही है। अतः ऐसी संका मत करौ, मैं हू आपकी भाँति ही पतिब्रत धर्म पर दृढ़ रहिबेवारी स्त्री हूँ।
(दोहा)
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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